Monday, December 1, 2025

रूचि/ भूख

 रुचि / भूख

            प्रत्येक व्यक्ति की रुचि भिन्न-भिन्न होती है । कुछ लोग भोजन में रुचि रखते हैं, कुछ की रुचि पढ़ने, लिखने में होती है और कुछ की घूमने फिरने में । रुचि जब एक सीमा से अधिक बढ़ जाती है तब उसे ‘भूख’ कहा जाता है । इस भूख को शांत करने के लिए व्यक्ति अनेकों प्रयास करता है । कहने का अर्थ है कि इस संसार में सभी के पीछे एक प्रकार की भूख लगी है । 

              मुख्य बात है कि आपका भोजन कैसा है, आप क्या पढ़ते/लिखते हैं, कैसी जगह जाते हैं, घूमते-फिरते हैं, आप कैसे लोगों के संग उठते-बैठते हैं ?  कहने का अर्थ है कि आपकी रुचि सात्विक है, राजसिक अथवा तामसिक । सात्विक भोजन आपकी पेट की भूख को शांत करेगा और शरीर को पुष्ट भी । घूमना यदि तीर्थों की ओर है तो ऐसा भावपूर्ण पर्यटन आपके अन्तर्मन को शुद्ध बनाता है । इसी प्रकार सात्विक पठन-पाठन और लेखन स्वयं को जानने की जिज्ञासा को शांत करते हैं । आत्म-ज्ञान की भूख जाग्रत होते ही सोच, विचार और आचरण बदल जाते है । पढ़ने, सुनने, बोलने और लिखने में एक प्रकार की संतुष्टि का अनुभव होता है । 

            कुछ समय के लिए लेखन से हुई दूरी से मुझे जीवन में कुछ अभाव का अनुभव हुआ, संभवतः संतुष्टि का अभाव । लेखन से आत्मसंतुष्टि मिलती है । दूसरी बात, पाठक भी पुनः लेखन प्रारम्भ करने का बार-बार आग्रह कर रहे हैं ।  विचारों को जो गति लेखन से मिलती है, वह मुझे किसी अन्य साधन से नहीं मिली । लेखनी जब चलती है, तब न जाने भीतर से इतने विचार कहाँ से प्रकट हो जाते हैं ? लेखनी तो आपकी हो सकती है परंतु भाव जागृत करने में निःसंदेह अदृश्य शक्ति की भूमिका रहती है । लेखनी उठती भी तभी है, जब भीतर भाव जगते हैं । लेखनी तो केवल उन भावों को भाषाबद्ध करती है । लेखन की भूख का सीधा सम्बन्ध भीतर उठ रहे भावों से है ।

          आत्मकल्याण में लेखन की भले ही प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती हो परंतु अध्यात्म पथ पर अग्रसर करने में इसका महत्वपूर्ण स्थान है । लेखन से आत्मकल्याण की भूख सदैव बनी रहती है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज गीता अवतरण दिवस से पुनः लेखन के माध्यम से आपके साथ जुड़ने जा रहा हूँ, इसी लेखन की ‘भूख’ के साथ ।

।। हरिः शरणम् ।।

डॉ. प्रकाश काछवाल


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