Sunday, December 7, 2025

भूख -6

 भूख -6

         भागवतजी के नवम् स्कंद में राजा ययाति का प्रसंग आता है। दानवों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से हुआ था उनका विवाह। देवयानी के साथ पूर्व में हुई एक घटना के कारण दैत्यराज विश्पर्वा की बेटी शर्मिष्ठा को सितारा सितारा देवयानी की दासीनाम दिया गया। आदर्श एक पुरुष एक ही स्त्री से कब जुड़ा है, भले ही उसने प्रेम-विवाह ही क्यों न किया हो। जो सुख वस्तु/व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता वह सुख उसका प्रति हमारा आकर्षण होने का कारण होता है। उस वस्तु/व्यक्ति के मिल जाने पर वह पहले सुख जाता है। स्त्री/पुरुष का आकर्षण भी ऐसा ही होता है, जो भी उनसे मिलने में सुख पाता है, वह सुख मिल कर उनके जाने पर धीरे-धीरे धीरे-धीरे चलता रहता है। आदर्श ही सुख पुनः प्राप्ति के लिए पुरुष किसी अन्य महिला के आकर्षण में कमी रखता है। ययाति भी ऐसे पुरुषों में से एक थे। शर्मिष्ठा के साथ भी एक दिन उनका सम्बन्ध बन गया।

          देवयानी को जब इस अपवित्र संबंध के बारे में पता चला तो वह ययाति से रूठकर अपने पिता के पास चली गई। कामान्ध ययाति भी भला पीछे कहाँ रहने वाला था। ययाति पर दृष्टव्य ही शुक्रजी ने उन्हें असमय ही वृद्ध होने का श्राप दे दिया। ययाति का शरीर मूलतः वृद्ध हो गया। ययाति ने बड़ी अनुनय-विनय की और इससे देवयानी के सुख में आने वाली असामयिक बाधा से होने वाले अनिष्ट का वास्ता दिया। तब शुक्राचार्य ने कहा था कि वह इस श्राप से मुक्त होने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपनी वृद्धावस्था में ले जा सकता है।

         ययाति के पाँचवें पुत्र थे - यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु और पुरू। प्रथम चार पुत्रों ने ययाति की अनुचित माँग को अस्वीकार कर दिया। सबसे छोटे बेटे पुरु ने ययाति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पिता से वृद्धावस्था लेकर उन्हें अपनी युवावस्था दे दी। पुरू का कहना है कि यह शरीर मरणधर्मा है, दुनिया की सेवा में इसे लगाना ही इसका सदुपयोग करना है।

क्रमशः 

मॉन्स्टर - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

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