भूख -2
मनुष्य अपनी अनेकों प्रकार की भूख के कारण ही विभिन्न योनियों में भटकते हुए संसार-चक्र से बाहर निकल नहीं पा रहा है । स्वामीजी कहते हैं कि हमें भूख लगती है इसका अर्थ है कि इस भूख को शान्त करने के लिए कहीं न कहीं भोजन अवश्य ही है । यदि भोजन नहीं होता तो भूख भी नहीं होती । इसी प्रकार स्वयं को जानने की जिज्ञासा है तो उस जिज्ञासा को शान्त करने के लिए कहीं ज्ञान भी है । कहने का अर्थ है कि आप जानते तो हैं कि आप शरीर नहीं है बल्कि इस शरीर से भिन्न है परन्तु अज्ञानवश आप इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ।
क्या कारण है कि मनुष्य की यह भूख मिटती ही नहीं है ? भोजन मिल जाने पर भी इस शरीर की भूख सदैव के लिए शान्त क्यों नहीं होती, बार-बार भोजन पाने की आवश्यकता क्यों रहती है ? जब तक हमें भूख की प्रकृति का ज्ञान नहीं होगा, तब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाएगा । चलिए ! पहले मनुष्य की भूख को जानने का प्रयास करते हैं ।
भूख दो प्रकार की होती है - सांसारिक और आध्यात्मिक । सांसारिक भूख जीव को विभिन्न योनियों में भटकाती है जबकि आध्यात्मिक भूख उसे मुक्त करती है । जब तक सांसारिक भूख से विमुखता नहीं होती तब तक आध्यात्मिक भूख का जाग्रत होना असम्भव है । दोनों भूख एक साथ जाग्रत नहीं रह सकती । प्रायः व्यक्ति दोनों भूख की बात करता अवश्य है परंतु वास्तव में वह आध्यात्मिक रूप से भूखा होने का केवल नाटक ही करता है ।
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरिः शरणम् ।।
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