Saturday, December 6, 2025

भूख -5

 भूख -5

          संसार के जितने भी सुख हैं, सब स्पर्शजन्य सुख है । मनुष्य शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं । संयोग से जब कोई एक भी विषय इनसे स्पर्श करता है तब शरीर को एक प्रकार के सुख का अनुभव होता है । इस प्रकार प्रथम स्पर्श से होने वाले सुख को संयोगजन्य सुख कहा जाता है । इस स्पर्श-संयोग से अनुभव हुए सुख को हमारी इन्द्रियाँ बार-बार चाहने लगती है । इस बार-बार की चाहना को ही वासना कहा जाता है । इससे सिद्ध होता है कि जीव की आवश्यकतामय भूख तो मिट सकती है परन्तु वासनामय भूख का मिटना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है ।

          राजा भृर्तहरि कहते हैं - 

           भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता:

                    तपो न तप्तं वयमेव तप्ता: ।

           कालो न यातो वयमेव याता:

                    तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा: ।। वैराग्य शतक /7 ।।

अर्थात् भोगों को हमने नहीं भोगा बल्कि भोगों ने हमें ही भोग लिया । तपस्या हमने नहीं की बल्कि हम ख़ुद तप गए । काल अर्थात् समय कहीं नहीं गया बल्कि हम स्वयं ही चले गए । इतना होने के बाद भी मेरी कुछ पाने की तृष्णा जीर्ण नहीं हुई बल्कि हम स्वयं ही जीर्ण हो गए ।

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

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