भूख -1
तो बात चल रही थी भूख की । चलिए ! इसी भूख पर बात को आगे बढ़ाते हैं । प्रत्येक जीव को भूख विरासत में जन्मजात मिलती है । भूख का अर्थ है - किसी चीज़ की आवश्यकता को अनुभव करना । यह आवश्यकता किसी की भी हो सकती है । शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता होती है तो भूख लगती है । मन को मनोरंजन की भूख होती है । आर्थिक अभाव वाले को धन की भूख होती है । आध्यात्मिक व्यक्ति को आत्म-ज्ञान की भूख होती है । भूख का अनुभव होता है तो यह निश्चित है कि उस भूख को शान्त करने के लिए कोई न कोई भोज्य पदार्थ अवश्य उपलब्ध है । उसकी अनुपस्थिति में भूख का अनुभव हो ही नहीं सकता ।
भूख के अनुभव से जो भोज्य पदार्थ ग्रहण किया जाता है उससे जीव को तुष्टि अर्थात् तृप्ति-सुख का अनुभव होता है । तुष्टि से पुष्टि होती है अर्थात् भोक्ता पुष्ट होता है । पुष्टि का अर्थ है जीवन में ऊर्जा का संचार । जब तुष्टि और पुष्टि का अनुभव हो जाता है तब भूख मिट जाती है अर्थात् क्षुधा निवृत्ति हो जाती है । यह क्षुधा निवृत्ति तब तक ही रहती है जब तक कि भोक्ता को तुष्टि और पुष्टि में किसी कमी का अनुभव नहीं हो । कमी का अनुभव होते ही भूख पुनः जाग्रत हो जाती है । भूख अन्य जीवों के लिए केवल शरीर को पुष्ट बनाए रखने का आधार मात्र है परन्तु मनुष्य की भूख का केवल एक मात्र यही कारण नहीं है । मनुष्य की भूख के कई कारण हो सकते है ।
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरिः शरणम् ।।
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