Friday, December 5, 2025

भूख -4

 भूख -4

         शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ है - त्वचा (स्पर्शेन्द्रिय), कान (श्रवणेन्द्रिय), नाक (घ्राणेंद्रिय), आँख (दर्शनेन्द्रिय) और जिह्वा (स्वादेन्द्रिय) । इनके पाँच विषय क्रमश इस प्रकार हैं - स्पर्श, शब्द, गंध, रूप और रस । विषय अपने से सम्बन्धित इंद्रिय के संपर्क में आता है, तब उस स्पर्श से उस विषय का ज्ञान होता है । उस ज्ञान से जीव को सुख या दुःख का अनुभव होता है । जिस विषय से उसे सुख का अनुभव होता है, उसे जीव बार-बार प्राप्त करना चाहता है और जिससे दुःख होता है उसकी उपेक्षा करना चाहता है । एक ही विषय कभी दुःख देता है और कभी सुख । इसी सुख-दुःख से राग - द्वेष पैदा होते हैं ।

            सुख-दुःख का अनुभव होना उस विषय की मात्रा, समय, परिस्थिति और स्थान आदि पर निर्भर करता है । जैसे अपने विरोधी की आलोचना जब सुनते हैं तो सुख का अनुभव होता है और प्रियजन की आलोचना सुनने पर दुःख का । मिष्ठान्न कम मात्रा में जो रस प्रधान करता है, अत्यधिक मात्रा में उपभोग करने पर वह दुःखी करता है । राग-रंग, संगीत आदि विवाह समारोह में तो सुख देते हैं परन्तु शोक की अवस्था में उन्हें देखकर ही उपेक्षा का भाव पैदा होता है ।

        इंद्रिय सुख को प्राप्त करने में पाँच कर्मेन्द्रियाँ अपना सहयोग देती है । कर्मेन्द्रियों की सक्रियता सुख-दुःख के अनुभव पर निर्भर करती है । मूल बात यह है कि इंद्रिय-सुख की चाहना ही मनुष्य की वासनामय भूख को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाती है । 

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

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