Friday, December 12, 2025

भूख -11

 भूख -11

     अब बात करते हैं, सामाजिक भूख की । भोग और संग्रह के पश्चात् बात आती है, सामाजिक मान-सम्मान की । भोग स्थूल शरीर की भूख है, संग्रह सूक्ष्म शरीर की भूख है और मान-सम्मान की चाह रखना सामाजिक भूख है । जब व्यक्ति के पास संग्रह अधिक हो जाता है, तब वह चाहता है कि समाज में उसकी प्रतिष्ठा हो, समाज से उसे मान-सम्मान मिले, समाज उसकी प्रशंसा करे । प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और प्रशंसा की चाह रखना सबसे बड़ा और ख़तरनाक ज़हर है । सामाजिक भूख को शान्त करने के लिए व्यक्ति भोग और संग्रह से कभी भी मुक्त नहीं हो सकता क्योंकि ये एक दूसरे के पूरक हैं । सामाजिक स्तर पर इतनी अधिक प्रतिस्पर्धा है कि अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के प्रयास में व्यक्ति कोल्हू का बैल बन जाता है ।

         इस प्रकार सांसारिक भूख के बारे में हमने अल्प रूप से चर्चा की । सांसारिक भूख कंचन, कामिनी और कीर्ति की भूख है । कंचन के संग्रह में लग जाना मानसिक भूख है । कामिनी को भोगने अर्थात् शरीर के सुख की कामना के कारण यह शारीरिक भूख है । कीर्ति की कामना रखना सामाजिक भूख है । कंचन, कामिनी और कीर्ति की भूख तब तक शान्त नहीं हो सकती जब तक हम इस संसार को महत्व देते रहेंगे । संसार दिखता अवश्य है परंतु वास्तव में वह है नहीं । इसी प्रकार कंचन, कामिनी और कीर्ति हमें आकर्षित करती अवश्य है परन्तु उनका अस्तित्व नहीं है, वे स्थाई नहीं है । कंचन अर्थात् धन आने-जाने वाला है, कामिनी का यौवन भी एक दिन ढल जाने वाला है और कीर्ति भी सदैव के लिए नहीं रहेगी ।

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

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