Saturday, July 26, 2025

एकान्त

 एकान्त  

    एकांत और अकेलापन, दोनों एक से प्रतीत होते हुए भी भिन्न हैं । एकांत में मनुष्य व्याकुल नहीं होता परन्तु अकेलापन उसे काट खाने को दौड़ता है । एकांत में एक का भी अन्त हो जाता है, ऐसे में व्यथित कौन हो ? चंचल मन अकेलेपन में सहारे के लिए किसी दूसरे को ढूँढता है जबकि शान्त मन अकेला होने की अवस्था में स्वयं में ही खो जाता है । यही एक का अन्त अर्थात् एकान्त है जहां न कोई विचार है और न ही चिन्तन।

     प्रत्येक प्रकार के चिन्तन से मुक्त होने के लिए मौन होना आवश्यक है, मौन बाहर से भी और भीतर से भी । फिर जो द्रष्टा-भाव पैदा होता है, वही आपको परमात्मा तक ले जाता है । इसी के अनुभव के लिए लेखन से अवकाश ले रहा हूँ । कब तक ? कह नहीं सकता, आगे हरि इच्छा ।

।। हरिः शरणम्।।

3 comments:

  1. अवकाश ज्यादा लंबा हो गया शायद आपका

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  2. हाँ, अवकाश लंबा हो गया... बेसब्री से इंतजार है आपके चिंतनों/विचारों का....
    🙏🙏

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  3. क्या अर्जुन युद्ध छोड़कर एकांत पा जाता? इसी मोह को श्रीकृष्ण ने हटाया...

    क्या लेखन को स्थगित करने से एकांत मिलेगा?
    आप जैसे विचारकों की जरूरत है ओरों के उत्थान के लिए, निमित्त मात्र बनकर, विवेक-प्रकाश को विचारों के माध्यम से फेलाने के लिए....
    कृपया, भगवान द्वारा दी हुई लेखन/Sharing सम्पदा की डोर को ना छोड़ें....

    य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति|
    भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय:||
    न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम:|
    भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि|| गीता 18.68-69||

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