रामकथा-51-
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्री रामचरित मानस में भगवान श्रीराम की लीला का अनुरक्ति पूर्ण वर्णन किया है। उनके इस ग्रंथ को पढ़ने और मनन करने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। यह ग्रंथ उत्तर भारत में बहुत प्रसिद्ध है। इस ग्रंथ का अध्ययन करने का अवसर हम सब को प्रायः मिलता ही रहता है। इसका विवेचन चाहे जितना करें, किया जा सकता है। जिस दृष्टि से गोस्वामीजी ने अपने आराध्य प्रभु को देखा है वह दृष्टि हम सबको मिले, तभी इस ग्रंथ के पाठ करने की सार्थकता है।आप सभी इस ग्रंथ को पढ़ते ही रहते हैं इसलिए मैं रामकथा को और अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा।अतः इस श्रृंखला को यहीं विराम देना चाहूंगा।
भगवान श्रीराम त्रेता में हुए और श्रीकृष्ण द्वापर में।हमें श्रीकृष्ण अपने अधिक निकट प्रतीत होते हैं क्योंकि उन्होंने जो लीला की वह आज के मनुष्य जीवन के अनुरूप ही की है। भगवान श्रीराम की लीला मनुष्य के जीवन से कुछ भिन्न प्रतीत होती है इसका कारण है, भगवान राम का मर्यादित जीवन। भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में मर्यादा का कभी उल्लंघन नही किया इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का काल हमारे अतिनिकट है, उनके और हमारे मध्य मात्र 5000 वर्ष के लगभग का समयांतर है।इसलिए उनकी लीला को देखने से हमें वह अधिक उचित जान पड़ती है। मर्यादा सीखनी हो तो श्रीराम से सीखें और निर्णय लेने की क्षमता, सत्य-असत्य में अंतर तथा कर्तव्य कर्म, कर्म से पलायन न करना, विषाद से निकलने की राह दिखाना और आनंद को उपलब्ध होना हो तो श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान आत्मसात करना होगा। इसलिए श्री हरि के इन दोनों ही अवतारों के जीवन की शिक्षा हमारे अवसाद रहित और मर्यादित जीवन के लिए उपयोगी हैं।
आप सभी का साथ बने रहने के लिए आभार।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्री रामचरित मानस में भगवान श्रीराम की लीला का अनुरक्ति पूर्ण वर्णन किया है। उनके इस ग्रंथ को पढ़ने और मनन करने से अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। यह ग्रंथ उत्तर भारत में बहुत प्रसिद्ध है। इस ग्रंथ का अध्ययन करने का अवसर हम सब को प्रायः मिलता ही रहता है। इसका विवेचन चाहे जितना करें, किया जा सकता है। जिस दृष्टि से गोस्वामीजी ने अपने आराध्य प्रभु को देखा है वह दृष्टि हम सबको मिले, तभी इस ग्रंथ के पाठ करने की सार्थकता है।आप सभी इस ग्रंथ को पढ़ते ही रहते हैं इसलिए मैं रामकथा को और अधिक विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा।अतः इस श्रृंखला को यहीं विराम देना चाहूंगा।
भगवान श्रीराम त्रेता में हुए और श्रीकृष्ण द्वापर में।हमें श्रीकृष्ण अपने अधिक निकट प्रतीत होते हैं क्योंकि उन्होंने जो लीला की वह आज के मनुष्य जीवन के अनुरूप ही की है। भगवान श्रीराम की लीला मनुष्य के जीवन से कुछ भिन्न प्रतीत होती है इसका कारण है, भगवान राम का मर्यादित जीवन। भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में मर्यादा का कभी उल्लंघन नही किया इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का काल हमारे अतिनिकट है, उनके और हमारे मध्य मात्र 5000 वर्ष के लगभग का समयांतर है।इसलिए उनकी लीला को देखने से हमें वह अधिक उचित जान पड़ती है। मर्यादा सीखनी हो तो श्रीराम से सीखें और निर्णय लेने की क्षमता, सत्य-असत्य में अंतर तथा कर्तव्य कर्म, कर्म से पलायन न करना, विषाद से निकलने की राह दिखाना और आनंद को उपलब्ध होना हो तो श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान आत्मसात करना होगा। इसलिए श्री हरि के इन दोनों ही अवतारों के जीवन की शिक्षा हमारे अवसाद रहित और मर्यादित जीवन के लिए उपयोगी हैं।
आप सभी का साथ बने रहने के लिए आभार।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।