परम ब्रह्म परमात्मा ने इस संसार में कई बार मनुष्य रूप में अवतार लिया है और मनुष्य रूप को धारण कर उनको भी उन्हीं परिस्थितियों से गुजरना पड़ा जिन परिस्थितियों से दो चार हम भी आये दिन होते रहते हैं। अवतारी परम पुरुष को हम मनुष्य मानें अथवा भगवान, इन दोनों के मध्य झूलती मानसिकता उनके प्रति द्वंद्व उत्पन्न करती है।भगवान मानें तो श्रद्धा पैदा होकर सिर उनके चरणों में झुक जाता है और अगर उन्हें मनुष्य मानें तो फिर उनके जीवन के बारे में कुछ शंकाएं पैदा हो जाती है।मनुष्य का मन किसी एक बात को सहज ही स्वीकार नहीं कर सकता । यही वह कारण है जिससे शंका और श्रद्धा, दोनों में से किसी एक ओर हम नहीं जा सकते।
राम भी मनुष्य है, कृष्ण भी है और हम भी मनुष्य ही है।वह कौन सी बात है जो राम और कृष्ण को तो ब्रह्म की श्रेणी में ले जाती है और हमें नहीं।इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही किसी भी अवतारी के जीवन के प्रति उत्पन्न दुविधाएं समाप्त हो जाती है और राम कृष्ण ही नही प्रकृति की सभी कृतियों के प्रति हमारी श्रद्धा हो जाती है। यह श्रद्धा होती है, उस परमात्मा के प्रति जो हम सबका कारण है, हम सब तो उनके कार्य मात्र हैं। ऐसी ही कुछ दुविधाओं से उपजे प्रश्न आदरणीय श्री कन्हैयालाल जी शर्मा, नई दिल्ली ने मुझे भेजे हैं, जो भगवान श्री राम के जीवन से सम्बन्धित है।उनको मैं सीधे ही इसका समाधान भेज सकता था परंतु मुझे लगा कि उनके मन में जैसे प्रश्न उठे हैं,हम सबके भी मन में यदा कदा उठते होंगे, तो क्यों न एक लघु श्रृंखला के रूप में इन प्रश्नों पर विचार कर लिया जाए। कल से राम कथा में विस्मृत हुए कुछ प्रसंगों पर चर्चा करते हुए हम अपनी शंकाओं को श्रद्धा में परिवर्तित करने का प्रयास करेंगे ।
।। हरि:शरणम्।।
राम भी मनुष्य है, कृष्ण भी है और हम भी मनुष्य ही है।वह कौन सी बात है जो राम और कृष्ण को तो ब्रह्म की श्रेणी में ले जाती है और हमें नहीं।इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही किसी भी अवतारी के जीवन के प्रति उत्पन्न दुविधाएं समाप्त हो जाती है और राम कृष्ण ही नही प्रकृति की सभी कृतियों के प्रति हमारी श्रद्धा हो जाती है। यह श्रद्धा होती है, उस परमात्मा के प्रति जो हम सबका कारण है, हम सब तो उनके कार्य मात्र हैं। ऐसी ही कुछ दुविधाओं से उपजे प्रश्न आदरणीय श्री कन्हैयालाल जी शर्मा, नई दिल्ली ने मुझे भेजे हैं, जो भगवान श्री राम के जीवन से सम्बन्धित है।उनको मैं सीधे ही इसका समाधान भेज सकता था परंतु मुझे लगा कि उनके मन में जैसे प्रश्न उठे हैं,हम सबके भी मन में यदा कदा उठते होंगे, तो क्यों न एक लघु श्रृंखला के रूप में इन प्रश्नों पर विचार कर लिया जाए। कल से राम कथा में विस्मृत हुए कुछ प्रसंगों पर चर्चा करते हुए हम अपनी शंकाओं को श्रद्धा में परिवर्तित करने का प्रयास करेंगे ।
।। हरि:शरणम्।।
Nice ✍️🏼
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