मामेकं शरणं व्रज –
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ज्ञान और परमात्मा की अनंतता और अपरिमेयता
के बारे में यूनान के महान दार्शनिक सुकरात का एक दृष्टान्त आपके साथ बाँटना
चाहूँगा | सुकरात ज्ञान की तलाश में कई वर्षों तक भटकते रहे थे | वे चाहते थे कि
परमात्मा से सम्बंधित संसार का समस्त ज्ञान स्वयं में उतार लूँ, आत्मसात कर लूँ |
इसी प्रयास में एक बार वे समुद्र के किनारे टहल रहे थे | तभी उनकी दृष्टि एक अबोध
बालक पर पड़ी | बालक अपने कटोरे में, अपने छोटे से प्याले में समुद्र का जल भर रहा
था और प्रयास कर रहा था कि समुद्र का सारा जल उस छोटे से कटोरे में समा जाये |
परन्तु जितना अधिक वह प्रयास कर रहा था उतनी ही उसकी उद्विग्नता भी बढती जा रही थी
| उसको समझ में नहीं आ रहा था कि समुद्र का समस्त जल मैं अपने प्याले में क्यों
नहीं भर पा रहा हूँ ? बालक की झुंझलाहट देखकर सुकरात के कदम रूक गए |
सुकरात ने बड़े प्रेम से बच्चे के
सिर पर हाथ फेरा और पूछा – “बेटे, क्या कर रहे हो ?” बालक ने बड़े भोलेपन से कहा कि
‘देखिये, समुद्र के सारे जल को मैं प्राप्त करना चाहता हूँ, और यह है कि मेरे
कटोरे में समा ही नहीं रहा है |’ सुकरात बालक की इस बात पर मुस्कुराते हुए बोले –
“भला, समुद्र का इतना विशाल राशि जल तुम्हारे इस छोटे से कटोरे में कैसे समा सकता
है ? अगर तुम चाहते हो कि समुद्र का सारा जल तुम्हारे कटोरे में आ जाये, तो एक ही
उपाय है कि तुम समुद्र में जाकर अपने कटोरे को समुद्र के जल में डुबो दो, इस प्रकार
सारा समुद्र ही तुम्हारे कटोरे में होगा |” बच्चे ने तत्काल ही ऐसा ही किया और देखा
कि समुद्र का जल कटोरे में ऊपर तक लबालब भर गया था | वह बड़ा खुश हो गया | बालक ने
सुकरात की तरफ दृष्टि डाली और बोला कि ‘ देखिये, समुद्र का सारा जल ही अब मेरा और
मेरे कटोरे में है क्योंकि मेरा कटोरा ही अब समुद्र में समा गया है |’ सुकरात को परम
संतोष की अनुभूति हुई कि उन्होंने एक बालक को उसकी मुस्कराहट वापिस लौटा कर उसे
खुश कर दिया है | संसार में सबसे अधिक आनंद किसी व्यथित व्यक्ति की खुशियाँ उसकी
झोली में डाल देना ही है | सुकरात उस समय यह नहीं जानते थे कि एक नन्हें से बालक
की बात उसके जीवन को भी परिवर्तित कर देगी ?
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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