मामेकं शरणं व्रज – 6
संसार के किसी भी धर्म की शिक्षा को लें, प्रत्येक धर्म की अंतिम शिक्षा
ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है | बौद्ध धर्म में कहते हैं - ‘बुद्धम् शरणम्
गच्छामि’ अर्थात बुद्ध की शरण में चले जाओ; ‘धर्मं शरणं गच्छामि’ अर्थात धर्म की
शरण में चले जाओ और ‘संघं शरणं गच्छामि’ अर्थात संघ की शरण में चले जाओ | तत्व की
दृष्टि से बुद्ध की शरणागति है, साधन की दृष्टि से धर्म की शरणागति है और आचार की
दृष्टि से संघ की शरणागति है | शरणागति जैन-सम्प्रदाय में भी है | जैन-सम्प्रदाय
में कहा जाता है - ‘आत्त-शरणो-भव’ अर्थात आत्मा की शरण में रहो | जैन-सम्प्रदाय
कहता है कि इस संसार और शरीर में राग-द्वेष है, जन्म-मरण है जबकि आत्मा में न राग
है; न द्वेष है, न जन्म है और न ही मरण | जैन धर्म में श्री महावीर, ऋषभदेव तथा
भगवान् पार्श्वनाथ की शरण होना कहीं पर भी नहीं कहा गया है | जो भी आत्म-शरण हो
गया, आत्म-निष्ठ हो गया, समझो, वह मोक्ष का अधिकारी हो गया |
इस प्रकार हमने देखा कि शरणागति शब्द
का वर्णन जैन धर्म में भी है, बौद्ध धर्म में भी है और वेदांत में तो है ही |
बौद्ध-धर्म में बुद्ध की शरण है जबकि जैन-धर्म में आत्मा की शरण है | बुद्ध की शरण
हो जाना बुद्ध की करुणा की पराकाष्ठा है, जबकि आत्मा की शरण अर्थात अपने आप की शरण
हो जाना पौरुष की पराकाष्ठा है | इसीलिए बौद्ध-धर्म करुणा प्रधान है और जैन-धर्म
अहिंसा प्रधान | सांख्य-योग में शरणागति के बारे में कहा जाता है कि प्रारम्भ
में ईश्वर-शरण और अंततः आत्म-स्थति ही शरण है | वेदांत में अंतःकरण की शुद्धि के
द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार करना मानते हैं | भक्ति-दर्शन तो और भी विलक्षण है
| भगवान का एक नाम शरण है और दूसरा शरण-भाव है | वे मानते हैं कि एक शरण-रूप तो
स्वयं भगवान् है और दूसरा जो शरणागति का भाव है, वह साधन है | एक उपेय है तो दूसरा
उपाय, एक साध्य है तो दूसरा साधन | इसका अर्थ यही हुआ की उपेय और उपाय, साध्य और
साधन एक प्रभु ही है | एक मिलने वाले और दूसरा मिलाने वाले |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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