Tuesday, May 31, 2016

भक्ति

              कल ही हमने अथ ब्रह्मा उवाच लेख की समापन कड़ी पढ़ी है | अध्यात्म के बारे में कितना भी पढ़ और लिख लिया जाये, आप परमात्म-भक्ति को तब तक प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक लिखी, पढ़ी बातों को अपने निजी जीवन में उतार न लें | इस संसार में इतना अमूल्य साहित्य उपलब्ध है जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते | साहित्य दो प्रकार के हैं; एक तो वैसा साहित्य है जिसे पढ़कर और आत्मसात कर आप काम और अर्थ प्राप्त कर सकते है और दूसरा साहित्य ऐसा भी उपलब्ध है, जिसे पढ़कर और आत्मसात कर आप परमात्म-भक्ति को प्राप्त कर सकते हैं | यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप क्या तो पढ़ते हैं और उस पढ़े हुए को कितना आत्मसात करते हैं | आप जैसा भी करेंगे उसका परिणाम आपको वैसा ही प्राप्त होगा | शुभ परिणाम और अशुभ परिणाम, सब कुछ इसी बात पर निर्भर करता है |
                मेरे मित्र गण मुझसे बार-बार कहते रहते हैं कि अगर हमारे सनातन शास्त्रों में से प्रमुख विषय निकालकर उनको रोचक रूप से प्रस्तुत किया जाये तो सभी को पठनीय लगेगा | इस और मैंने कुछ प्रयास भी किया है, जो “पुनर्जन्म और विज्ञान” नाम की पुस्तक के रूप में गत वर्ष ही प्रकाशित हुई है | कल ही  एक मित्र ने मुझसे कहा है कि आप कुछ “भक्ति” पर भी लिखें, जो पढ़ने में आकर्षक लगे | आज से मैंने “भक्ति” विषय पर लेखन प्रारम्भ किया है, आपको रोचक लगेगा या नहीं, कह नहीं सकता परन्तु मेरा प्रयास यही रहेगा कि आपको यह विषय नीरस न लगे |
            हरिः शरणम् आश्रम के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा का सदैव मेरे ऊपर वरद् हस्त और स्नेह रहा है; के साथ संपर्क वैसे तो बाल्यकाल से ही रहा है परन्तु आश्रम की स्थापना के बाद से यह संपर्क और अधिक हो गया है | प्रारम्भ में मैंने ज्ञान और भक्ति में से ज्ञान को सदैव ही प्रमुखता दी थी | आचार्यजी के साथ ने मुझे यह ज्ञान करा दिया कि बिना भक्ति के ज्ञान व्यर्थ है | बिना भक्ति के ज्ञान, ज्ञान न होकर अज्ञान ही है क्योंकि जो ज्ञान परमात्मा की और न ले जाये वह सब अज्ञान ही है | आत्ममंथन के बाद मुझे यह ज्ञान हो गया कि ज्ञान को भक्ति में बदलने के लिए किसी संत महापुरुष की आवश्यकता होती है | केवल किताबी ज्ञान हो सकता है कि आपको सांसारिकता में उच्चतम स्थिति तक पहुंचा दे परन्तु आध्यात्मिकता के लिए उसी ज्ञान को भक्ति में बदलना आवश्यक है | मैंने जो कुछ भी सद् साहित्य पढ़कर और आचार्यजी से भक्ति के बारे में ज्ञान प्राप्त किया है, उसको आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | प्रस्तुतीकरण में किसी भी प्रकार की त्रुटि हो तो क्षमा करें परन्तु साथ ही मार्गदर्शन अवश्य करें  |

      || हरिः शरणम् ||                                      डॉ प्रकाश काछवाल    

1 comment:

  1. आदरणीय डॉक्टर साहिब,

    आपके द्वारा दिये गए विभिन्न विषयों के ज्ञान का सरलीकरण बहुत ही अद्भुत है और उसको अपने जीवन में अवश्य ही उतारना चाहिए |
    मैं आरम्भ से ही आपके ब्लॉग का पाठक हूँ |

    आपके द्वारा पुनः आरंभ किये गए इस पुनीत पावन कार्य के लिए आपका ह्रदय की गहराइयों से धन्यवाद

    पंकज

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