Sunday, May 22, 2016

ब्रह्मा का कथन

        आज हरिः शरणम् आश्रम से आये हुए एक सप्ताह हो गया है और यहाँ आने के बाद भी वहां का प्रवास ही यादों में बह रहा है | पवित्र स्थान और आदरणीय आचार्यजी का साथ फिर से कब मिलेगा, कह नहीं सकता क्योंकि सब कुछ परमात्मा के हाथ में है | जैसा कि आचार्यजी ने कहा भी है कि सत्संग केवल संत का साथ ही नहीं है, सनातन शास्त्रों का साथ, उनको पढ़ना और पढ़ी गई बातों पर विचार करना भी सत्संग होता है | उन्हीं की कही गई बातों को आत्मसात करते हुए इन दिनों प्रतिदिन कुछ न कुछ परमात्मा से सम्बंधित सामग्री का पठन प्रारम्भ किया है | वैसे पहले भी समय मिलने पर ऐसा करता रहता था, परन्तु जब से चिकित्सकीय व्यवसाय को प्राथमिकता देना बंद कर दिया है, इस और रुचि कुछ अधिक ही हो गयी है | 
                  अभी कल ही किसी महान व्यक्तित्व का आलेख पढ़ रहा था, जिसमें एक दृष्टान्त दिया गया था | दृष्टान्त कुछ इस प्रकार है- “एक बार ब्रह्मा जी के पास देवता, दानव और मनुष्य गये और उपदेश देने के लिए प्रार्थना की | ब्रह्मा जी ने तीनों को कहा .... " द द द " | तीनों प्रसन्न होकर चले गये | इसी पर विचार करके मेरा यह लेख है, जिसको आप आद्योपांत पढ़कर अपनी अमूल्य भावनाओं से मुझे अवगत कराएँ, यह मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है | हो सकता है, मैंने इस दृष्टान्त का उचित और सही विश्लेषण नहीं किया हो |  मैं आपको सम्पूर्ण दृष्टान्त प्रारम्भ में ही इसलिए नहीं बता रहा हूँ क्योंकि आगे इस लेख में समय समय पर इसका विश्लेषण किया गया है | इस लेख का शीर्षक है- “अथ ब्रह्मा उवाच” | यह लेख आप प्रतिदिन एक एक कड़ी के रूप में पढ़ पाएंगे क्योंकि इसके लेखन का कार्य अभी चल रहा है | कल से आपकी सेवा में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, इस लेख “अथ ब्रह्मा उवाच” की पहली किश्त |
                        ||हरिः शरणम् ||

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