आज बुद्ध पूर्णिमा है, जिसका सम्बन्ध भगवान बुद्ध से है | भगवान बुद्ध का जन्म, उनको ज्ञान प्राप्ति और उनका महापरिनिर्वाण तीनों ही वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही हुए थे | इसी कारण से इस पूर्णिमा को बुद्ध-पूर्णिमा कहा जाता है | उनका जन्म ईसापूर्व 526 में नेपाल में स्थित कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था | उनके पिता का नाम शुद्धोधन और माता का नाम महामाया देवी था | उनका जन्म नाम सिद्धार्थ था | उनका विवाह 16 वर्ष की आयु में राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ था | विवाह के कई वर्ष बाद उनके पुत्र पैदा हुआ था जिसका नाम राहुल था | इससे कुछ समय पूर्व ही उन्होंने एक रोगग्रस्त व्यक्ति, एक वयोवृद्ध व्यक्ति, एक व्यक्ति की शवयात्रा और एक सन्यासी व्यक्ति को देखा, जिनके कारण उनका मन उद्वेलित हो गया | वे जरा और मृत्यु से मुक्त होने का उपाय खोजने का विचार करने लगे |पुत्र जन्म को उन्होंने स्वयं के वैराग्य के लिए एक बंधन माना | इस कारण से तत्काल ही वे 29 वर्ष की आयु में यशोधरा और दूधमुंहे राहुल को सोते हुए ही छोड़कर राजमहल को त्याग दिया |
उसके पश्चात उन्होंने पांच ब्राह्मण तपस्वियों के पास रहकर छः वर्ष तक निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की | वे कृशकाय हो चुके थे | वे एक रात निरंजना नदी को तैर कर पार कर रहे थे | उनके शरीर की उर्जा लगभग समाप्त हो चुकी थी | उनसे तैरना तक मुश्किल हो गया था | इतने में उनके हाथ नदी के दूसरे किनारे से लटकती पेड़ की कुछ जड़ें लग गयी | वे उनके सहारे ही कुछ समय तक नदी में लटकते रहे | थोड़ी देर बाद जब उनके शरीर में कुछ उर्जा का संचार हुआ तो वे हिम्मत कर नदी के बाहर आये | थोड़ी दूर चलकर वे एक वटवृक्ष के नीचे लेट गए और विचार करने लगे कि इतनी कठोर तपस्या का क्या फायदा जिससे जरा और मृत्यु से मुक्ति का रास्ता तक न मिल सके | उन्होंने कठोर तपस्या के सब प्रपंच त्यागने का निर्णय लिया | उस रात वे उसी वटवृक्ष के नीचे सो गए |
सुबह उठते ही उहोने अपने सामने सुजाता को खड़े पाया जिसके हाथ में खीर भरा कटोरा था | सुजाता ने उस वटवृक्ष से पुत्र प्राप्ति की कामना की थी जिसके पूर्ण होने पर आज पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष देवता को प्रसाद अर्पण करने आई थी | उसने वहां लेटे सिद्धार्थ को वटवृक्ष देवता समझा और उनके जागने का इंतजार करने लगी | सिद्धार्थ ने जागते ही सुजाता के द्वारा भेंट किये खीर के कटोरे को हाथ में लेकर आनन्द के साथ उसको उदरस्थ किया | विगत रात को ही उन्होंने समस्त व्रत आदि को छोड़ने का निर्णय किया ही था | दिन भर वे अपने विगत दिनों की कठोर तपस्या के बारे में विचार करते रहे | उसी रात को उनको सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसे “सम्बोधि “ नाम से कहा जाता है, जिस वटवृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ उसे “बोधिवृक्ष” और जहाँ उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ उस स्थान को “बोधगया” कहा जाता है | वे स्वयं भगवान् बुद्ध कहलाये | उनके ज्ञान की प्रमुख बात है- किसी भी प्रकार की अति से बचना | यही सम्यक ज्ञान है |
ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् उन्होंने अपने पांच ब्राह्मण तपस्वियों को खोजकर ज्ञान दिया | इसके बाद वे समस्त संसार को ज्ञान बांटने के लिए निकल पड़े | सर्वप्रथम उन्होंने अपना प्रवचन सारनाथ में दिया, जो कि बनारस के निकट है | बाद में उनके परिवार के सदस्य भाई, पिता और पुत्र भी उनके शिष्य बने | उन्होंने मगध प्रदेश के खूंखार डाकू अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तित कर दिया जो बाद में अहिंसका नाम से बोध भिक्षु के रूप में प्रसिद्ध हुआ |
उनका महापरिनिर्वाण वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही 483 ईसापूर्व 80 वर्ष की आयु में हुआ | आज बोद्ध धर्म संसार के बड़े भाग मैं फैला हुआ है | सम्राट अशोक उनके अनुयायी थे | भीमराव अंबेडकर भी बोद्ध थे | हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ श्री मद्भागवत महापुराण में भगवान् श्री कृष्ण के बाद, भगवान् विष्णु का 23 वां अवतार इनका होना भी बताया गया है |
देवद्विषां निगमवर्त्मनि निष्ठितानां
पूर्भिर्मयेन विहिताभिरदृश्यतूर्भिः |
लोकान् घ्नतां मतिविमोहमतिप्रलोभं
वेषं विधाय बहुभाष्यतऔपधर्म्यम् ||भागवत 2/7/37||
अर्थात देवताओं के शत्रु दैत्य लोग भी वेदमार्ग का सहारा लेकर मयदानव के बनाये हुए अदृश्य वेग वाले नगरों में रहकर लोगों का सत्यानाश करने लगेंगे, तब भगवान लोगों की बुद्धि में मोह और अत्यंत लोभ उत्पन्नकरने वाला वेश धारण करके बुद्ध के रूप में बहुत से उप-धर्मों का उपदेश करेंगे |
आज भी बुद्ध की शिक्षाएं हमारे जीवन के लिए उपयोगी हैं | आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की शुभ कामनाएं |
- डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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