अथ ब्रह्मा उवाच-4
मनुष्य हो अथवा दानव या देवता, है तो आखिर मनुष्य से ही परिवर्तित | देवता, वे मनुष्य जो सत्व के मार्ग पर चलकर देह छोड़ने के पश्चात् स्वर्ग में विभिन्न प्रकार के भोगों का आनंद ले रहे हैं | जिन्होंने इस भौतिक संसार में रहते हुए सत्कर्म किये, सत्य के मार्ग पर चले परन्तु फिर भी मुक्त न हो सके | मुक्त हो जाते तो स्वर्ग तक ही क्यों पहुँचते, सीधे परमात्मा में ही विलीन हो जाते न | इसीलिए देवता भी एक प्रकार की योनि ही हुई, अर्थात देव योनि, मनुष्य योनि की भांति ही, बस अंतर केवल इतना सा ही है कि देव योनि में भोग, देहत्याग के बाद स्वर्ग में भोगे जाते है | जब अपने सत्कर्मों का फल पूर्ण रूप से भोग लिया जाता है, तब उन्हें पुनः इस संसार में मनुष्य योनि में जन्म लेना ही पड़ता है |इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देवता भी मनुष्य योनि से ऊपर की एक प्रकार की योनि ही है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है-
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोSर्जुन |
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते || गीता 8/16||
मनुष्य हो अथवा दानव या देवता, है तो आखिर मनुष्य से ही परिवर्तित | देवता, वे मनुष्य जो सत्व के मार्ग पर चलकर देह छोड़ने के पश्चात् स्वर्ग में विभिन्न प्रकार के भोगों का आनंद ले रहे हैं | जिन्होंने इस भौतिक संसार में रहते हुए सत्कर्म किये, सत्य के मार्ग पर चले परन्तु फिर भी मुक्त न हो सके | मुक्त हो जाते तो स्वर्ग तक ही क्यों पहुँचते, सीधे परमात्मा में ही विलीन हो जाते न | इसीलिए देवता भी एक प्रकार की योनि ही हुई, अर्थात देव योनि, मनुष्य योनि की भांति ही, बस अंतर केवल इतना सा ही है कि देव योनि में भोग, देहत्याग के बाद स्वर्ग में भोगे जाते है | जब अपने सत्कर्मों का फल पूर्ण रूप से भोग लिया जाता है, तब उन्हें पुनः इस संसार में मनुष्य योनि में जन्म लेना ही पड़ता है |इस प्रकार हम कह सकते हैं कि देवता भी मनुष्य योनि से ऊपर की एक प्रकार की योनि ही है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा भी है-
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोSर्जुन |
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते || गीता 8/16||
अर्थात्, हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! ब्रह्मलोक पर्यंत सब लोक पुनरावर्ती हैं,परन्तु जो मुझको प्राप्त हो जाता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता| इसका स्पष्ट अर्थ यही है कि देवलोक से भी वापिस इस भौतिक संसार में लौटना ही पड़ता है, जन्म लेना ही पड़ता है|
इसी प्रकार साधारण मनुष्य से भी निम्न स्तर के एक और प्रकार के मनुष्य होते हैं और वे कहलाते हैं, दानव | जिन मनुष्यों ने सत्कर्म न करके बुरे कर्म किये हों, उन्हें ही यह दानव योनि मिलती है | इस योनि में दानव लोग सभी को कष्ट देते रहते हैं, किसी को भी कष्ट पहुँचाने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता है | एक प्रकार की क्रूरता और हिंसा ही उनका स्वभाव बन जाता है | दूसरे को सुखी देखकर वे दुखी हो जाते हैं और किसी भी प्रकार उनको दुःख में डालने का उपाय खोजने में लगे रहते हैं |
आपने प्रायः यह पढ़ा और सुना होगा कि दानवों और देवताओं में सदैव ठनी रहती है, युद्ध चलता रहता है | देवता और दानव मनुष्य से कोई अलग नहीं हैं | मनुष्य के भीतर ही देव है, मनुष्य के भीतर ही दानव बैठे हैं | इन सुर एवं असुरों, दोनों के मध्य सदैव युद्ध चलता रहता है | जब देव शक्तियां विजयी हो जाती है, मनुष्य देवत्व को उपलब्ध हो जाता है और अगर आसुरी शक्तियों की विजय होती है, तो मनुष्य दानव बन जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिःशरणम् ||
इसी प्रकार साधारण मनुष्य से भी निम्न स्तर के एक और प्रकार के मनुष्य होते हैं और वे कहलाते हैं, दानव | जिन मनुष्यों ने सत्कर्म न करके बुरे कर्म किये हों, उन्हें ही यह दानव योनि मिलती है | इस योनि में दानव लोग सभी को कष्ट देते रहते हैं, किसी को भी कष्ट पहुँचाने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता है | एक प्रकार की क्रूरता और हिंसा ही उनका स्वभाव बन जाता है | दूसरे को सुखी देखकर वे दुखी हो जाते हैं और किसी भी प्रकार उनको दुःख में डालने का उपाय खोजने में लगे रहते हैं |
आपने प्रायः यह पढ़ा और सुना होगा कि दानवों और देवताओं में सदैव ठनी रहती है, युद्ध चलता रहता है | देवता और दानव मनुष्य से कोई अलग नहीं हैं | मनुष्य के भीतर ही देव है, मनुष्य के भीतर ही दानव बैठे हैं | इन सुर एवं असुरों, दोनों के मध्य सदैव युद्ध चलता रहता है | जब देव शक्तियां विजयी हो जाती है, मनुष्य देवत्व को उपलब्ध हो जाता है और अगर आसुरी शक्तियों की विजय होती है, तो मनुष्य दानव बन जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिःशरणम् ||
No comments:
Post a Comment