ब्रह्मांड जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। हम प्रजातांत्रिक देश के निवासी हैं। प्रजातंत्र का अर्थ है, देश का प्रत्येक व्यक्ति महत्वपूर्ण है और समान अधिकार रखता है। राष्ट्रपति देश के सर्वोच्च पदासीन व्यक्ति होते हैं। उनकी सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल होता है। राष्ट्रपति के प्रतिनिधि राज्यों में राज्यपाल होते हैं और उनकी सहायता के लिए मुख्यमंत्री का मंत्रिमंडल होता है, जिनकी सहायता के लिए जिलाधिकारी, बीडीओ और पंचायत के मुखिया होते हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र के विकास के लिए काम करते हैं। इस व्यवस्था से गांव का अंतिम व्यक्ति देश के महामहिम राष्ट्रपति से जुड़ा रहता है। इसलिए इसे गणतांत्रिक प्रजातंत्र कहा जाता है। इसी तरह हमारे ब्रह्मांड में भी ऐसी ही व्यवस्था है। ब्रह्मांड में दिव्य शक्तियां आच्छादित हैं। उसी दिव्य शक्ति से आकाशगंगा का निर्माण हुआ है। विज्ञान भी कहता है कि ताप ऊर्जा जब अत्यधिक सघन बन जाती है तो उसका द्रवीकरण हो जाता है। उसी द्रव्यमान को आकाशगंगा माना गया है।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन कहते हैं कि पदार्थ जब अत्यंत घनीभूत हो जाता है तो ऊर्जा बन जाता है और ऊर्जा पदार्थ बन जाती है। यह क्त्रम चलता रहता है। विज्ञान की दृष्टि से शायद उसी दिव्य प्रकाश ऊर्जा का द्रव्यमान आकाशगंगा है। संभव है, आकाशगंगा को जन्म देने वाली दिव्य शक्ति जिसे आइंस्टीन ने सुपर पावर कहा है, वही ब्रह्मांड का मूल हो। जो प्राण शक्ति बनकर संपूर्ण ब्रह्मांड का नियंत्रण कर रही हो। वही ब्रह्मांड की सर्वोच्च अधिकारी होगी, उसी ने आकाशगंगाओं में अपार ऊर्जा शक्ति भरी होगी, उसी के नियंत्रण में एक अनुमान के अनुसार बीस हजार से अधिक निहारिकाएं बनी होंगी और किसी एक निहारिका के अंदर अनेक सूर्य मंडलों में से हमारा यह सूर्य होगा, जिसके सीधे संपर्क में हमारी पृथ्वी गतिमान है। इस तरह ऊर्जा का मूल स्रोत कोई दिव्य प्रकाश है, जो आकाशगंगा,निहारिका और सूर्य मंडल से होते हुए पृथ्वी तक आता है और पृथ्वी से 84 लाख जीव-जंतुओं में गतिमान होता है। ऐसा लगता है कि हमारा ब्रह्मांड पूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंदर कार्य करता है। लोकतंत्र में जिस प्रकार शासन सूत्र धीरे-धीरे ऊपर से देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचते हैं, उसी प्रकार ब्रह्मांड की दिव्य शक्ति भी विभिन्न माध्यमों से होते हुए जीव तक पहुंचती है |
|| हरिः शरणम् ||
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