Monday, March 3, 2014

जागरण |

                                   भय और भ्रम के निवारण के लिए मनुष्य का जागना अत्यावश्यक है |जब तक हम अपने सपनों में ही खोये रहेंगे तब तक भय और भ्रम दोनों से ही मुक्त नहीं हो सकते | सपने से बाहर निकलने के लिए जागना जरूरी है |मनुष्य की सबसे बड़ी कमी है कि वह भौतिक रूप से जागते हुए भी सपने देखना नहीं छोड़ पाता |इसलिए उसके इस प्रकार जगे रहने को जागरण नहीं कहा जा सकता |जब तक मनुष्य जागते हुए भी सपने देखना बंद नहीं कर देगा तब तक वह भ्रम-जाल से निकल नहीं पायेगा |जैसा कि हमने उस राजा के बारे में कहानी पढ़ी है , जिसने सपने में भरापूरा परिवार देखा था ,ऐसी ही कभी किसी के साथ कोई घटना घटित हो जाती है तब अचानक वह एक झटके के साथ जागरण को प्राप्त होता है |ज्ञान किताबों में सब लिखा है,शास्त्रों में सब जगह वर्णित है,संत सब जगह प्रवचन में कहते हैं फिर भी इन सब के कारण कितने लोग जागे है,यह आप और मैं भली-भांति जानते हैं |
                                 राजा परीक्षित,जिसको ऋषि-पुत्र ने सात दिन में सर्पराज तक्षक द्वारा काटे जाने और तत्पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो जाने का श्राप दिया था, उनसे सम्बंधित एक प्रसंग है | राजा परीक्षित ने अपनी संभावित  मृत्यु स्वीकार करते हुए शुकदेव जी से भागवत सुनना प्रारंभ किया |आप जानते हैं क्यों? मात्र मृत्यु के भय से मुक्त होने के लिए | जब तक व्यक्ति भय से मुक्त नहीं होगा तब तक वह इस भ्रम ,इस संसार से भी मुक्त नहीं हो सकता |भागवत सुनने के लिए उसके पास मात्र एक सप्ताह ही था |संसार का सारा ज्ञान भागवत में है |वक्ता भी इस संसार में शुकदेवजी के बराबर न तो उस समय कोई था और न ही कोई भविष्य में हो सकता है |परीक्षित गंगा जैसी पवित्र नदी के किनारे सुरम्य वातावरण में बैठ कर,सब राजकार्यों से मुक्त होकर बड़ी तल्लीनता  से भागवत सुन रहे थे |उन्हें भागवत सुनते छः दिन हो गए थे |भागवत से उनके सभी मोह और आकांक्षाएं समाप्त हो गई परन्तु अपने शरीर का मोह वह छोड़ न सके |शुकदेवजी सब समझ गए |उन्होंने सातवें दिन परीक्षित को एक कथा सुनाई,जिससे उनका अपने शरीर से भी मोह समाप्त हो गया |
                                शुकदेवजी ने कथा प्रारम्भ की |बोले-"हे राजन!एक राजा शाम के समय जंगल में आखेट के लिए निकला |वह शिकार के पीछे पीछे जंगल में काफी दूर तक निकल गया |शिकार खेल कर जब वह लौटने को उद्यत हुआ तो रात हो चुकी थी |जंगल में उसे हिंसक जानवरों की आवाजे सुनकर भय सताने लगा |उसे भ्रम होने लगा कि आस पास ही कोई सिंह व्याघ्र जैसा हिसंक जानवर है मिल सकता है |जो उसे मार सकता है | अब उसे रात गुजारने के लिए किसी सुरक्षित स्थान की तलाश थी |तभी उसे दूर कहीं एक जलते दीपक से आती रोशनी दिखाई दी |उसने उस तरफ किसी मनुष्य का निवास स्थान होना समझा | यह सोचकर वह उधर चल पड़ा |पास पहुंचकर उसने देखा कि वह एक बहेलिये की झोंपड़ी थी |राजा घोड़े से उतरा और बहेलिये को अपना परिचय दिया |साथ ही रात को वहाँ ठहरने देने की प्रार्थना की |बहेलिया बोला-"राजन ! आप जरा भीतर आइये |देखिये,डर के कारण मैं भी रात को बाहर नहीं निकलता हूँ |इस कोने में मैंने अपना मल-मूत्र  त्यागने का स्थान बना रखा है, जिस कारण से यहाँ आपको बदबू महसूस होगी |इधर छत से मरे जानवरों की खालें लटक रही है |ऐसे में आप को यहाँ बहुत असुविधा होगी |" राजा बोला-"एक रात की ही तो बात है |सुबह नींद से जागते ही मैं वापिस चला जाऊंगा |"बहेलिया बोला-"नहीं राजन!जो एक बार यहाँ रुक जाता है ,फिर उसे यहाँ आनंद आने लगता है |उसे  यहाँ की बदबू भी खुशबू लगने लगती है |फिर वह यहाँ से किसी भी सूरत में जाना ही नहीं चाहता |"राजा बोला-"नहीं,मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सुबह जागते ही मैं यहाँ से निकल जाऊंगा |" अंत में थकहारकर बहेलिये ने उन्हें रूकने का कह दिया |राजा रात भर के लिए वहाँ रुक गया |सुबह हुई |बहेलिये ने राजा को लौट जाने को कहा |राजा ने वापिस जाने से इंकार कर दिया |" इतना कहकर शुकदेवजी रुक गए | उन्होंने अकस्मात ही कहानी सुनानी बंद कर दी |
         राजा परीक्षित चौंक उठे,बोले-"महात्मन!आगे भी सुनाइए |आपने कहानी सुनानी बंद क्यों कर दी ? वह राजा ऐसे कैसे कर सकता है ? बहेलिये को दिए आश्वासन से वह मुकर कैसे सकता है ?मुझे आगे भी बताइए वह राजा कौन था ? मैं उसके वहाँ रुके रहने का कारण जानना चाहता हूँ |"
               शुकदेवजी बोले-"राजन!वह राजा आप ही हैं |"परीक्षित ने पूछा -"कैसे?"शुकदेवजी बोले-"और क्या राजन!आसन्न मृत्यु देखते हुए भी तुम्हारा इस मल-मूत्र देने वाले शरीर के प्रति अभी भी मोह है |तभी तो वह राजा तुम्ही हो | इस संसार में व्यक्त होने वाली समस्त आत्माएं अपने परमात्मा को यही आश्वासन देकर आती है कि वे जल्दी ही वापिस लौट आएगी | परन्तु इस संसार में आकर भी ,यह जानकर भी कि यह केवल  दुखालय है ,फिर भी यहाँ संसार और शरीर के मोह में इतना फंस जाती है कि परमात्मा के पास वापिस जाना ही नहीं चाहती |बार बार पुनर्जन्म लेकर इस शरीर में आना चाहती है | आपको भी तो इस शरीर से ही तो मोह है | इस कारण से आप ही तो वह राजा हुए |" यह सुनकर परीक्षित की आँखे अनायास ही खुल गई |और उनका शरीर से भी मोह नष्ट हो गया |
                          सम्पूर्ण भागवत सुनकर भी जिसका शरीर से मोह और मृत्यु से भय नहीं गया हो ,उसका शरीर से मोह औरमृत्यु से भय एक कहानी सुनने मात्र से ही नष्ट हो गया |ऐसे जाग जाना ही वास्तविक जागरण है | अब कोई कैसे जागरण को उपलब्ध होता है वह सब परिस्थितयों और समय पर निर्भर करता है |सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर भी आप मोह से मुक्त नहीं होते , और कभी एक छोटी सी घटना ही आपको इस  जीवन-मोह से मुक्त कर देती है |
                                 || हरिः शरणम् ||

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