जागरूक होकर हम कोई भी उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं। फिर हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता..
अध्यात्म विमुख होने का नहीं, बल्कि सम्मुख होने का संदेश देता है। वह चेतना को जगाने की बात करता है। अपनी चेतना को जाग्रत रख पाने के लिए ही हमें यह मानव जीवन मिला है। हम उपलब्धियां भी तभी प्राप्त करेंगे, जब जागते रहेंगे। जागे बिना, हम न तो खुद को जान पाते हैं, न ईश्वर को। कठोपनिषद में कहा गया है - "उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निवोधत।" अर्थात, उठो, जागो और श्रेष्ठता को प्राप्त करो। इस श्लोक को स्वामी विवेकानंद अपने व्याख्यानों में उद्धृत करते रहते थे।
इसलिए जागना जरूरी है। लेकिन हम नींद में खोए हुए हैं। यह नींद मोह की है, लोभ की है, माया की है..। हमारी चेतना तभी जागती है, जब हम हम काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह इत्यादि को छोड़ देते हैं। तब हमें अपनी ही आत्मा का परम प्रकाश दिखाई देता है। हमें अपने भीतर ही परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं। तब हमारे पास आत्मविश्वास घनीभूत होकर आ जाता है और हम समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर जाते हैं। यह जागरण तभी होता है, जब हमारे भीतर राग-द्वेष, आसक्ति आदि मिट जाए और हम आत्मोन्मुख से परोन्मुखी हो जाएं , केवल स्वयं के बारे में ही नहीं सोचे, सबके बारे में ,सबके हित का सोचें |
जो जागता है, उसे ही जागरूक कहते हैं। ईश्वर का प्रकाश खोजने से पहले अपने भीतर का प्रकाश खोजना होगा। वहीं हमें ईश्वर भी मिल जाता है। अध्यात्म और योग शास्त्र हमें जागरूक रहना सिखाते हैं, फिर हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। अतः हमारी जिंदगी में जागरण आवश्यक है |
|| हरिः शरणम् ||
|| हरिः शरणम् ||
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