Wednesday, March 5, 2014

व्यक्ति की महानता |

                       किसी भी व्यक्ति की महानता का आकलन करने के लिए प्रत्येक समाज या विचारधारा के अलग-अलग पैमाने होते हैं। इन्हीं के आधार पर हम लोगों को महान कहते हैं।भारतीय संस्कृति में यह पैमाने सदियों पहले से ही निश्चित किये हुए हैं जिनकी सार्थकता आज भी है |
                      वेदों में महानता के पांच लक्षण बताए गए हैं। प्रथम लक्षण है व्यक्ति का कर्मयोगी होते हुए परमेश्वर, समाज और राष्ट्र के लिए जीवन समर्पित करना। दूसरा लक्षण है कि वह मान-अपमान, लाभ-हानि आदि की परवाह न करते हुए और सदा आनंदित रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहता है। वह दूसरों को भी आनंद प्रदान करता है। व्यक्ति की महानता का तीसरा लक्षण यह है कि वह मननशील, सहनशील और मर्यादा पालक होता है। उसका धर्म मनुष्यता या परोपकार पर आधारित होता है। गीता के अनुसार निष्काम कर्म करने वाला यानी अपने लाभ के लिए कर्म न करने वाला व्यक्ति महानता के लक्षण पूरे करता है।चौथा लक्षण यह है कि उसमें छोटापन नहीं होता है। उसका हृदय विशाल होता है और वह प्रत्येक जीव को समान आदर और प्रेम की दृष्टि से देखता है। महानता का पांचवां लक्षण यह है कि ऐसा व्यक्ति स्वयं प्रकाशित होता है और अपने इस प्रकाश से अन्य लोगों को भी प्रकाशित करता है यानी वह ज्ञान और ऊर्जा से परिपूर्ण होता है और अन्य लोगों को भी प्रेरित करता है जिससे वे भी अपना अज्ञान मिटाकर कर्मशील होकर ज्ञानमार्ग पर बढ़ सकते हैं।
                      सदैव दूसरों की सहायता करने वाला, पुरुषार्थयुक्त, उत्तम बल से युक्त, बुद्धिमान और विशेष ज्ञान वाला और बिना किसी स्वार्थ के सेवा में तत्पर रहना आदि गुणों से सुशोभित होना भी महानता के लक्षण हैं। महान व्यक्तियों के कर्मो और स्वभाव को समझकर यदि हम आत्मसात कर सकें तो अपने जीवन में कुछ सुधार ला सकते हैं। आज तक इस धरती पर जितने भी कर्मशील लोग पैदा हुए हैं, सभी ने अपने-अपने तरीके से कुछ रचनात्मक योगदान दिया है। इस सृष्टि को इन विचारकों, मनीषियों और वैज्ञानिकों आदि ने समस्याओं का समाधान करते हुए समृद्ध बनाया है।
                      अंग्रेजी भाषा में एक कहावत है जिसका आशय है कि कुछ लोग जन्म से महान होते हैं, कुछ महान बन जाते हैं और कुछ पर महानता थोप दी जाती है। हमारी संस्कृति के अनुसार महानता किसी पर थोपी नहीं जा सकती है। सतत साधना करते हुए नर और नारायण की सेवा करके हम महान बन सकते हैं |
                         || हरिः शरणम् || 

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