आज से नए साल २०१५ का आरम्भ है |सन् २०१४ में हमने इस संसार में कट्टरपंथियों का प्रभाव बढ़ते हुए देखा है |जिस प्रकार धर्म के नाम पर मानवता का क़त्ल गत वर्ष हुआ है वैसा शायद पूर्व में कभी नहीं हुआ होगा |ईश्वर से प्रार्थना है कि यह २०१५ का वर्ष ऐसी किसी घटनाओं के लिए भविष्य में याद नहीं किया जाये जैसा २०१४ को किया जायेगा |आप सभी को नव-वर्ष की बहुत बहुत शुभ कामनाएं |
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कर्मों का प्रारम्भ-
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कर्मों का प्रारम्भ-
जब शिशु का जन्म होता है तब वह किसी भी प्रकार
के योग-कर्म करने की स्थिति में नहीं होता | वह केवल भोग-कर्म ही कर सकता है | मां
की ममता का आनंद लेना, दुग्ध पान करना ,रोना, मुसकुराना ,हाथ-पाँव हिलाना आदि सभी
क्रियाएं भोग-कर्म के अंतर्गत ही आती है |कई लोग यह कह सकते हैं कि प्रत्येक शिशु
ही ऐसा करता है तो क्या सभी शिशुओं को एक ही प्रकार के भोग-कर्म करने होते हैं ?
नहीं, ऐसा नहीं है |अगर आप सभी शिशुओं की क्रियाएं गंभीरता के साथ देखें तो आपको अंतर
स्पष्ट हो जायेगा |कई शिशु 10 माह की उम्र में अपने आप चलना प्रारम्भ कर देते हैं जबकि कुछ 2 वर्ष की उम्र में और कुछ तो
जीवन भर ही चलना नहीं सीख पाते |इसी प्रकार किसी के जन्म-जात विकृति होती है और किसी
के प्रसव की प्रक्रिया में बाधा आ जाने के कारण शारीरिक और मानसिक विकृतियाँ पैदा
हो जाती है | ऐसा सब भोग-कर्मों के कारण ही संभव हो सकता है |
मैं एक शिशु रोग विशेषज्ञ हूँ और अपने इस जीवन में हजारों शिशुओं के जन्म का साक्षी रहा हूँ |सभी जन्म लेने
वाले शिशुओं और उनकी माताओं के जीवन का पूरा ध्यान रखा जाता है |फिर भी कई शिशु जन्म
लेने के बाद विभिन्न प्रकार की विकृतियों के शिकार हो जाते हैं या काल कलवित हो जाते हैं और इसी तरह से कई
माताओं को भी विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ झेलनी पड़ती है तथा कुछ को अपनी जान तक
गवानी पड़ती है |इतने सुरक्षित प्रसव के बाद भी ऐसी घटनाएँ होना क्या
प्रदर्शित करता है ? मैं यह नहीं कहता कि इतनी सावधानियों के बाद भी ऐसी घटनाएँ
होती है तो सब कुछ भाग्य भरोसे छोड़ देना चाहिए | इतनी सावधानियों के कारण शिशु मृत्यु-दर
और मातृत्व मृत्यु-दर में कमी अवश्य ही आई है | परन्तु फिर भी प्रश्न यह उठता है कि इतना सब
करने के बावजूद भी किसी किसी शिशु में शारीरिक और मानसिक विकृतियाँ पैदा हो जाना क्यों होता
है ? प्रश्न बड़ा सीधा सादा है और उत्तर भी |यह सब पूर्व जन्मों के योग-कर्मों से
उत्पन्न फल ही हैं जो इस जन्म में भोग -कर्म के रूप में प्राप्त हुए है | इन्हीं भोग-कर्मों को करने के
लिए आज यहाँ पर शिशु और मां, दोनों ही विवश हैं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
श्रद्धेय श्री काछवाल , किसी अनोखे संयोग से आपके ब्लॉग पन्नो तक पहुँच गया और बहुत अभिभूत हुआ। स्वयं के बारे में बताते हुए आपने पुनर्जन्म के सम्बन्ध में हल्का सा विवरण दिया। इस विषय में आपके विचार जानकार बहुत प्रसन्नता होगी, कृपया और जानकारी दें।
ReplyDelete