गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म करते रहने की सलाह दी।यह ज्ञान "कर्मयोग" नाम से जाना जाता है।गीता के इसी "कर्मयोग" को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं परंतु वास्तव में इसे बहुत कम लोगों ने समझा है।गीता के इसी कर्मयोग को बहुत से दार्शनिक और ज्ञानी महापुरुषों ने अपनी समझ के अनुसार इसकी व्याख्या की है।उनकी व्याख्या को मैंने भी पढा है और पूरी तरह किसी से भी संतुष्ट नहीं हूँ।उन सभी व्याख्याओं को पढने और गीता के अध्ययन के बाद "कर्मयोग" के बारे में जो मेरी समझ में आया है वह पूर्व में की गई व्याख्याओं से कुछ भिन्न अवश्य है परंतु आलोच्य बिल्कुल भी नहीं है।आलोच्य कोई भी व्याख्या हो ही नहीं सकती है क्योंकि वे सब संबधित व्यक्तियों द्वारा अपनी अपनी सोच और समझ से की गई है।जैसा भी व्यक्ति समझता है, वह वैसा ही व्यक्त करता है और अपनी सोच और समझ के अनुसार सभी का अपना एक सत्य होता है।अतः उसकी इस सत्यता पर अंकुश लगाने का अर्थ है, परमात्मा की सत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाना। मेरी तरह ही सभी को यह स्वतंत्रता है कि वह अपने विचार रखे।अतः कर्मयोग की कोई भी व्याख्या कभी भी आलोच्य नहीं है। इसी भावना के साथ मैं भी" कर्मयोग "पर अपने विचार रखने का प्रयास कर रहा हूं।
कर्म को जैसा गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, वह हमने उसके ठीक विपरीत उसे समझा है। गीता का ज्ञान हम सहस्राब्दियो से पढते और सुनते आ रहे हैं, फिर भी हम इस छोटे से शब्द" कर्म " को सही तरीके से समझ नहीं पाए हैं ।प्रायः हम प्रत्येक प्रकार के होते हुए कर्म को ही कर्मयोग तथा कर्ता को कर्मयोगी घोषित कर देते हैं जो कि पूरी तरह से असत्य है।ऐसे में यह जानने की जरूरत है कि आखिर कर्म की सत्यता क्या है? जिस दिन आप कर्म के बारे में पूर्ण रूप से जान और समझ लेंगे, आप भी कर्मयोग के मार्ग पर चलकर कर्मयोगी बन सकते हैं।
कर्मयोग आम व्यक्ति को समझ में आ जाए, उसी भाषा और अंदाज में अपने विचार व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूं। कितना सफल हो पाउँगा , ऐसा किसी भी प्रकार का विचार मेरे मन में कहीं भी नहीं है । इस तरह का कोई भी विचार का न होना ही कर्मयोग का एकमात्र और महत्वपूर्ण सिध्दांत है।इस दौरान अगर कोई भी प्रश्न, कर्म, कर्मयोग अथवा कर्मयोगी के सम्बन्ध में तो उनका स्वागत है। मेरे से जहां तक संभव होगा आपकी शंकाओं के समाधान का प्रयास करूंगा।
पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य और सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण नियमित रूप से लेखन कार्य नहीं कर पा रहा हूँ। भविष्य में इसे नियमित करने का प्रयास करूंगा। आशा है आप सभी से सहयोग मिलेगा।सप्ताह में कम से कम दो बार का क्रम तो बना रहेगा, ऐसी आशा है।
।। हरि : शरणम्।।
कर्म को जैसा गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, वह हमने उसके ठीक विपरीत उसे समझा है। गीता का ज्ञान हम सहस्राब्दियो से पढते और सुनते आ रहे हैं, फिर भी हम इस छोटे से शब्द" कर्म " को सही तरीके से समझ नहीं पाए हैं ।प्रायः हम प्रत्येक प्रकार के होते हुए कर्म को ही कर्मयोग तथा कर्ता को कर्मयोगी घोषित कर देते हैं जो कि पूरी तरह से असत्य है।ऐसे में यह जानने की जरूरत है कि आखिर कर्म की सत्यता क्या है? जिस दिन आप कर्म के बारे में पूर्ण रूप से जान और समझ लेंगे, आप भी कर्मयोग के मार्ग पर चलकर कर्मयोगी बन सकते हैं।
कर्मयोग आम व्यक्ति को समझ में आ जाए, उसी भाषा और अंदाज में अपने विचार व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूं। कितना सफल हो पाउँगा , ऐसा किसी भी प्रकार का विचार मेरे मन में कहीं भी नहीं है । इस तरह का कोई भी विचार का न होना ही कर्मयोग का एकमात्र और महत्वपूर्ण सिध्दांत है।इस दौरान अगर कोई भी प्रश्न, कर्म, कर्मयोग अथवा कर्मयोगी के सम्बन्ध में तो उनका स्वागत है। मेरे से जहां तक संभव होगा आपकी शंकाओं के समाधान का प्रयास करूंगा।
पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य और सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण नियमित रूप से लेखन कार्य नहीं कर पा रहा हूँ। भविष्य में इसे नियमित करने का प्रयास करूंगा। आशा है आप सभी से सहयोग मिलेगा।सप्ताह में कम से कम दो बार का क्रम तो बना रहेगा, ऐसी आशा है।
।। हरि : शरणम्।।
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