मानव जन्म में किये जाने वाले योग-कर्म तथा कर्म-योग,इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है । अतः इन दो शब्दों को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम रखने की आवश्यकता नहीं है । कर्म-योग ,एक ऐसी उच्च अवस्था का नाम है जिसे प्रत्येक मनुष्य प्राप्त करना चाहता है । इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को योग-कर्म करना आवश्यक है । प्रत्येक योग-कर्म करने वाला व्यक्ति कर्म-योगी नहीं हो सकता परन्तु कर्म-योगी बनने के लिए योग-कर्म करना प्रत्येक आकांक्षी मनुष्य के लिए आवश्यक है ।योग-कर्म और कर्म-योग के बीच केवल मात्र यही सम्बन्ध है ।दोनों को एक समझ लेना उचित नहीं है ।
आजकल हम किसी भी मंच से ,किसी भी व्यक्ति को कर्म-योगी की उपाधि से विभूषित कर देते हैं । ऐसा कहना हमारी गलत सोच का परिणाम है ।जब प्रत्येक मनुष्य को कर्म करने की स्वतंत्रता है और प्रत्येक के लिए कर्म करने आवश्यक हैं तथा इस संसार में कोई भी व्यक्ति कर्म किये बिना नहीं रह सकता तो ऐसे में प्रत्येक कोई कर्म-योगी नहीं हो जायेगा । कर्म-योगी बनने के लिए केवल मात्र योग-कर्म करने ही पर्याप्त नहीं है । कर्म-योग एक साधना का नाम है जिसे प्रत्येक प्रकार के योग-कर्म करते हुए प्राप्त नहीं किया जा सकता । हाँ,योग-कर्म ही एक मात्र ऐसा साधन है जिसे करते हुए मनुष्य कर्म-योग को प्राप्त हो सकता है । अतः हमें सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि योग-कर्म क्या है? योग-कर्म कितने प्रकार के है ? किस प्रकार के योग-कर्म करते हुए व्यक्ति कर्म-योग को उपलब्ध हो सकता है ?जब तक हम योग-कर्म को सही प्रकार से नहीं समझेंगे तब तक कर्म-योग को उपलब्ध नहीं होंगे । कर्म-योग को उपलब्ध हो जाना ही कर्म-योगी हो जाना है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
आजकल हम किसी भी मंच से ,किसी भी व्यक्ति को कर्म-योगी की उपाधि से विभूषित कर देते हैं । ऐसा कहना हमारी गलत सोच का परिणाम है ।जब प्रत्येक मनुष्य को कर्म करने की स्वतंत्रता है और प्रत्येक के लिए कर्म करने आवश्यक हैं तथा इस संसार में कोई भी व्यक्ति कर्म किये बिना नहीं रह सकता तो ऐसे में प्रत्येक कोई कर्म-योगी नहीं हो जायेगा । कर्म-योगी बनने के लिए केवल मात्र योग-कर्म करने ही पर्याप्त नहीं है । कर्म-योग एक साधना का नाम है जिसे प्रत्येक प्रकार के योग-कर्म करते हुए प्राप्त नहीं किया जा सकता । हाँ,योग-कर्म ही एक मात्र ऐसा साधन है जिसे करते हुए मनुष्य कर्म-योग को प्राप्त हो सकता है । अतः हमें सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि योग-कर्म क्या है? योग-कर्म कितने प्रकार के है ? किस प्रकार के योग-कर्म करते हुए व्यक्ति कर्म-योग को उपलब्ध हो सकता है ?जब तक हम योग-कर्म को सही प्रकार से नहीं समझेंगे तब तक कर्म-योग को उपलब्ध नहीं होंगे । कर्म-योग को उपलब्ध हो जाना ही कर्म-योगी हो जाना है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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