उपरोक्त चारों चरण
,कर्मयोग को उपलब्ध होने के कदम है |इन चारों चरणों के संपन्न होते ही व्यक्ति
कर्मयोगी हो जाता है | कर्मयोगी होते ही कर्मों का चयन भी निष्प्रभावी हो जाता है
| जैसा कि मैंने अकर्म या निष्काम कर्म के अंतर्गत उल्लेख किया है कि कर्मयोग के
लिए कर्मों की पसंद या नापसंद नहीं होनी चाहिए |इसके विपरीत कर्मयोग के पथ का
प्रथम चरण ही कर्मों का चयन है | आपको यह दोनों बातें विरोधाभासी लग सकती है | परन्तु
वास्तव में ये विरोधी है नहीं| कर्मयोग के प्रारम्भ में आपको कर्मों का चयन करना
ही होगा परन्तु इस मार्ग पर आगे बढ़ने पर यह चयन स्वतः ही समाप्त हो जाता है
क्योंकि निष्काम कर्म करते हुए आप ऐसे किसी भी चयन से ऊपर उठ चुके होते हैं |
जब आप कर्मयोग के पथ पर चौथे चरण
को पार कर लेते हैं ,तो स्वतः ही कर्मों का चयन समाप्त हो जाता है | अब आपसे सकाम
कर्म अथवा विकर्म संभव ही नहीं होंगे |आप जो भी कर्म करेंगे,वे सभी कर्म कामना
रहित और कर्तापन भाव से मुक्त होंगे | ऐसी स्थिति आ जाती है कि आप कर्म में अकर्म
और अकर्म में कर्म देखने लगते है |आपके लिए न तो कोई कर्तव्य रहेगा और न ही कोई
कर्म |आप जो भी कर्म करेंगे, वे सभी कर्म और उनका फल, सभी परमात्मा को समर्पित
होंगे| ऐसे में कहाँ तो कर्म होंगे और कौन होगा कर्ता ? इसी कर्म की अवस्था को
कर्म योग और व्यक्ति को कर्मयोगी कहा जाता है |
|| हरिः शरणम् ||
नववर्ष 2072 की शुभकामनाएं ।
नववर्ष 2072 की शुभकामनाएं ।
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