प्रथम चरण-
कर्मयोग के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रथम
कदम होता है, कर्मों का चयन | कर्मों का चयन आप केवल तीन प्रकार के कर्मों में से
ही एक प्रकार का कर सकते हैं |सकाम कर्म और विकर्म दोनों ही कर्मयोग के अंतर्गत
नहीं आते हैं |अतः आपका चयन निष्काम कर्म ही होना चाहिए |अगर आपने सकाम कर्म का
चयन किया तो आप कर्मों और उसके फलों में
आसक्त होकर कर्म-बंधन में बंध जायेंगे और अगर आपने विकर्म को चुन लिया तो फिर आप
सदैव भयग्रस्त रहने को अभिशप्त होंगे |अतः निष्काम कर्म ही कर्मयोग के लिए उचित
कर्म हैं |
द्वितीय चरण-
कर्मयोग के पथ का दूसरा कदम होता है-
वर्तमान में रहते हुए वर्तमान के लिए ही कर्म करना | हम सभी लोग कहने मात्र को
वर्तमान में जीते हैं| परन्तु गहराई से विचार करें तो वर्तमान में हम सदैव ही भूत
और भविष्य की परछाई में जी रहे होते हैं | हमें अपने भूतकाल से पिंड छुड़ाना होगा,
उसे कहीं गहराई में दफ़न करना होगा, उसे विस्मृत करना होगा | ठीक इसी प्रकार भविष्य
को भी अनदेखा करना होगा और सोचना होगा कि जो सत्य है वह सिर्फ और सिर्फ वर्तमान है
शेष सभी कुछ असत्य है |इस बात को आत्मसात करने से ही आप निष्काम कर्म करने को प्रेरित
हो सकते हैं, अन्यथा भूत और भविष्य में रहते हुए तो केवल सकाम-कर्म या विकर्म ही हो सकते हैं और सकाम-कर्म तथा विकर्म आपको कभी भी कर्मयोगी नहीं बना सकते ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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