इस प्रकार हमने कर्मों
की गति की गहनता पर विचार किया |तीनों प्रकार के कर्मों की विशेषताओं पर गहराई से
विचार करके उनको आत्मसात कर लेने पर ही हम कर्मयोग के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं |कर्मों
के बारे में स्पष्ट रूप से समझ लेने और उसी अनुरूप कर्म करने वाला ही कर्मयोगी
कहला सकता है, प्रत्येक प्रकार के या केवल कर्म करने वाला नहीं |
कर्म-योग
का पथ-
सभी प्रकार के कर्मों की विशेषताओं को भली
भांति समझ कर मनुष्य अपने लिए किये जाने वाले कर्मों का चयन कर सकता है |कर्मों की
विशेषताएं ही यह तय करता है कि वे कर्म कर्मयोग के अनुरूप है या नहीं |प्रत्येक
कर्म को करने के पीछे क्या भावना है, वह कर्म करने से अधिक महत्वपूर्ण है |अगर कर्म
करने के पीछे कुछ प्राप्त करने की भावना होती है तो फिर यह कर्मयोग नहीं है |
व्यक्ति सत्कर्म करता ही इसी लिए है कि उस कर्म के फल उसे प्राप्त हो, ऐसे कर्म
करके आप कर्म योगी नहीं हो सकते |आज के समय व्यक्ति दान करने में भी अपनी प्रशंसा
पाने का इच्छुक रहता है, ऐसा दान भी वास्तविकता में दान नहीं है |मैंने अपने
बुजुर्गों से सुना है कि दान ऐसा होना चाहिए कि जो कुछ भी आप दाहिने हाथ से दे रहे
हैं उसकी भनक तक बाये हाथ को भी नहीं होनी चाहिए |चलिए, अब विचार करते है कर्मयोग पर,
ऐसे कर्मों का,जिसे करने पर मनुष्य कर्म योगी बन सकता है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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