एक बार भगवान बुद्ध उसी जंगल से विहार कर रहे थे,जिस जंगल में डाकू अंगुलिमाल लूटपाट करता था |आज अंगुलिमाल को सुबह से ही कोई व्यक्ति नहीं मिला था,जिसकी अँगुलियों की वह माला बना सके |वह झाड़ियों की ओट में बैठा किसी ऐसे व्यक्ति का इंतजार कर रहा था , जो उसका शिकार बन सके |आखिर उसका इंतजार समाप्त हुआ | भगवान् बुद्ध के रूप में ऐसा व्यक्ति उसे आता हुआ नज़र आया |ज्योंही भगवान बुद्ध उन झाड़ियों के सामने से गुजरने लगे,जिनके पीछे अंगुलिमाल छुपा हुआ था ,एक आवाज बुद्ध को सुनाई दी-"ठहरो"| यह आवाज अंगुलिमाल की थी,जो भगवान् बुद्ध को रूकने का कह रही थी |भगवान बुद्ध "ठहरो" सुनते ही पीछे की तरफ पलटे |झाड़ियों की ओट से बाहर आकर अंगुलिमाल उनके सम्मुख खड़ा था |उसकी आँखे लाल सुर्ख थी |आँखों से वहशीपन की ज्वाला निकल रही थी |उसकी आँखों से खून टपक रहा था |आतंक साफ दृष्टिगोचर हो रहा था | उस आतंक की प्रतिमूर्ति को देखकर भी भगवान बुद्ध निर्विकार भाव से खड़े रहे थे | उनके मुख पर अंगुलिमाल के प्रति करूणा के भाव थे |उन्होंने अंगुलिमाल को संबोधित करते हुए बहुत ही मधुर शब्दों में कहा-"मैं तो कभी का ठहर चूका,परन्तु तुम कब ठहरोगे,अंगुलिमाल ?"
अंगुलिमाल के जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई व्यक्ति उसके सामने खड़ा होकर,आँखों में आँखे डालकर,बड़ी ही करुणा और प्रेमपूर्वक उससे कह रहा था |भगवान बुद्ध के द्वारा कहा गया यह वाक्य अंगुलिमाल को भीतर तक घायल कर गया |जो व्यक्ति आज तक किसी की भी एक बात तक सुनना पसंद नहीं करता था ,आज इस एक वाक्य को सुनकर घायल हो गया था | अंगुलिमाल ने विचार किया-"यह कैसा व्यक्ति है,जो मृत्यु को सामने खड़ा देखकर भी विचलित नहीं है ? मेरे से डरकर लोग मेरे सामने आने से कतराते थे और यह मनुष्य बिना किसी डर के मेरे सामने खड़ा है |हो ना है यह व्यक्ति साधारण मनुष्य तो नहीं है |"
अंगुलिमाल घायल हो चूका था |उसने तत्काल ही भगवान बुद्ध के चरण पकड़ लिए |जीवन में अपने द्वारा किये हुए कुकृत्यों की क्षमा मांगने लगा | भगवान ने उसे उठाकर गले से लगा लिया |आज अंगुलिमाल बिना किसी हिंसा के मर गया और एक बोद्ध भिक्षु का जन्म हुआ | यह है गुरु की भूमिका,जिसने एक भयंकर डाकू को सिद्ध पुरुष में परिवर्तित कर दिया |
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
अंगुलिमाल के जीवन में ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई व्यक्ति उसके सामने खड़ा होकर,आँखों में आँखे डालकर,बड़ी ही करुणा और प्रेमपूर्वक उससे कह रहा था |भगवान बुद्ध के द्वारा कहा गया यह वाक्य अंगुलिमाल को भीतर तक घायल कर गया |जो व्यक्ति आज तक किसी की भी एक बात तक सुनना पसंद नहीं करता था ,आज इस एक वाक्य को सुनकर घायल हो गया था | अंगुलिमाल ने विचार किया-"यह कैसा व्यक्ति है,जो मृत्यु को सामने खड़ा देखकर भी विचलित नहीं है ? मेरे से डरकर लोग मेरे सामने आने से कतराते थे और यह मनुष्य बिना किसी डर के मेरे सामने खड़ा है |हो ना है यह व्यक्ति साधारण मनुष्य तो नहीं है |"
अंगुलिमाल घायल हो चूका था |उसने तत्काल ही भगवान बुद्ध के चरण पकड़ लिए |जीवन में अपने द्वारा किये हुए कुकृत्यों की क्षमा मांगने लगा | भगवान ने उसे उठाकर गले से लगा लिया |आज अंगुलिमाल बिना किसी हिंसा के मर गया और एक बोद्ध भिक्षु का जन्म हुआ | यह है गुरु की भूमिका,जिसने एक भयंकर डाकू को सिद्ध पुरुष में परिवर्तित कर दिया |
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥