महापुरुषों ने अपने योग-कर्म
के प्रकार को बदला और फल प्राप्त करने की कामना का विसर्जन कर दिया |कामना के
विसर्जन से उनके योग-कर्मों का प्रकार स्वतः ही बदल गया |इन योग-कर्मों से ही उनके
जीवन को एक नई ऊँचाई मिली और वे इतिहास में अमर हो गए | कामना पूर्ति के लिए कर्म
करके वे कभी भी महान नहीं बन सकते थे |अगर वे भी कामना पूर्ति के लिए विषयों में
आसक्त रहकर कर्म करते तो इतिहास में एक साधारण मनुष्य की तरह कभी के गुम हो जाते |उनका
अनुभव हमें मात्र यही ज्ञान देता है कि हमें भी अपने जीवन में मिल रही असफलताओं से
घबराना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें एक अवसर समझना चाहिए,अपने आत्मचिंतन के लिए और योग-कर्मों
के प्रकार को परिवर्तित करने के लिए | सफलता भाग्य से अवश्य मिलती है, परन्तु याद
रखें, भाग्य भी आपके द्वारा किये जा रहे योग-कर्मों से ही बनता है |
अपना भाग्य व्यक्ति स्वयं ही
बनाता है और यह भाग्य बिना कर्म किये बनना संभव नहीं है |बिना किसी कर्म के किये, हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने से न तो इस जीवन में कुछ प्राप्त होना है और न ही नए
जन्म में |आपके साथ आपके कर्म ही जाते हैं अन्य कुछ भी नहीं |अतः यह सोच कर कि कर्म
करने से किसी को या तो लाभ होगा या किसी
को हानि, कर्म करना छोड़ देना अनुचित है |इसी लिए गीता में भगवान ने अर्जुन को
दूसरे अध्याय में अपने संबोधन के प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि कर्म न
करने से कर्म करना श्रेष्ठ है |
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥