Tuesday, December 5, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.- 30

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.-30
प्राणायामं प्रत्याहारं नित्यानित्यविवेक विचारम् |
जाप्यसमेत समाधिविधानं, कुर्ववधानं महदवधानम् ||30||
अर्थात प्राणायाम, उचित आहार तथा सदैव इस संसार की नश्वरता का विचार करें | गोविन्द का नाम जपते हुए समाधि पर ध्यान केन्द्रित करें | समाधि पर ध्यान देना आवश्यक है |
        भौतिक शरीर साधना के लिए है, इसलिए इसका स्वस्थ रहना आवश्यक है | शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग गुरु पतंजलि ने अपने द्वारा प्रतिपादित अष्टांग-योग में दो साधन बताये हैं, प्राणायाम और प्रत्याहार | प्राणायाम आपके श्वसन-तंत्र को और प्रत्याहार पाचन-तंत्र को स्वस्थ रखता है | इस दोनों तंत्रों से शरीर के अन्य सभी तंत्र स्वस्थ रह सकते हैं | स्वस्थ शरीर ही मनुष्य के जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक है | इसलिए प्राणायाम और प्रत्याहार आवश्यक हैं | प्राणायाम में सांस की गति को नियंत्रित किया जाता है और प्रत्याहार में आहार को | सांस और आहार अगर सही हो, तो फिर दीर्घायु पाना कोई असंभव नहीं है |
            परन्तु एक दीर्घ जीवन हम किस उद्देश्य को पाने के लिए चाहते हैं ? यह स्पष्ट होना आवश्यक है | सर्वप्रथम हमें यह विचार सदैव मन में रखना चाहिए कि यह शरीर नश्वर है | प्राणायाम और प्रत्याहार के साथ शरीर की नश्वरता का ध्यान रखने से हम अपने जीवन के उद्देश्य से भटक नहीं सकेंगे | हमारे जीवन का एक ही उद्देश्य है, आत्म-ज्ञान अर्थात परमात्मा को पाना | शरीर को स्वस्थ रखकर अगर आप निरंकुश हो जाते है, हिंसक हो जाते है तो फिर शरीर को स्वस्थ रखने का उद्देश्य ही क्या रह जाता है ? अतः स्वास्थ्य के साथ यह भी ध्यान में रहना चाहिए कि यह शरीर नश्वर है और हमें परम ज्ञान की ओर जाना है |  इसके लिए भगवान का नित्य स्मरण करते हुए स्वयं के भीतर प्रवेश करना होगा | संसार से अलग होकर स्वयं के अन्दर प्रवेश करने का नाम ही समाधि है | इसलिए शंकराचार्य महाराज कह रहे हैं कि प्राणायाम और उचित आहार के साथ-साथ शरीर की नश्वरता का विचार करते हुए अपने भीतर प्रवेश कर समाधिस्थ हो जाएँ |
             हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह संसार नश्वर है | हमें अपनी सांस, अपना भोजन और अपना चाल-चलन संतुलित रखना चाहिए | हमें सचेत होकर उस ईश्वर पर अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर देना चाहिए |
“भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल- भज गोविन्दम् कृति का अंतिम श्लोक
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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