भज गोविन्दम् –
श्लोक सं.27(समापन)-
संसार का चिंतन छोड़ गोविन्द के
सुन्दर स्वरूप का अनवरत ध्यान किस प्रकार किया जाये ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए
शिष्य कह रहा है कि इसके लिए आप साधु-महात्माओं के साथ सत्संग करो | संतों के संग
से आपका चित्त संसार से धीरे-धीरे असंग होता जायेगा और परमात्मा में आपका मन लगने
लगेगा | संसार से मोह छूटना इतना सरल नहीं है | सबसे अधिक मोह अगर परिवार के बाद
किसी का होता है, तो वह है धन का | धन का मोह भी सरलता से नहीं छूटता | साधु-संतों
के संग से परिवार का मोह तो फिर भी छूट जाता है परन्तु अपनी जीविका के प्रति
संशयग्रस्त रहने से धन का मोह छूटना जरा मुश्किल नज़र आता है |
परमात्मा की शरण लेने के बाद
व्यक्ति को जीवनयापन की चिंता भी नहीं करनी चाहिए | भगवान श्री कृष्ण गीता में
अर्जुन को कह रहे हैं कि मेरी शरण में आये हुए की मैं स्वयं चिंता करता हूँ | उसको
अप्राप्त की प्राप्ति मैं करा देता हूँ और उसके द्वारा प्राप्त किये की रक्षा भी
मैं करता हूँ | अतः शरणागत को मन में किसी भी प्रकार की चिंता न रखते हुए सभी
प्रकार के मोह का भी त्याग कर देना चाहिए |
शंकराचार्य जी महाराज का यह
शिष्य धन के मोह से छुटकारे का उपाय बतलाते हुए कह रहा है कि अपने पास संचित किये
हुए धन से गरीब और बेसहारा व्यक्तियों की सहायता करें | इससे दो लाभ हैं, एक तो
सेवा की सेवा हो जाएगी और दूसरे धन से मोह दूर हो जायेगा | इस प्रकार इस श्लोक में
आदि गुरु के शिष्य ने तीन महत्वपूर्ण बातें कही है, जो हमें संसार से मुक्त कर
परमात्मा की और ले जा सकती है | एक-गोविन्द का भजन, दो-सत्संग और तीन- गरीबों की
धन से सेवा | तीनों ही बातें हमें मुक्ति की दिशा की ओर ले जाएगी | अतः उस
परमेश्वर का सदैव ध्यान कीजिये | उसकी महिमा का गुणगान कीजिये | हमेशा संतों की
संगति में रहिये और गरीब एवं बेसहारा व्यक्तियों की सहायता कीजिये | यही बात 14
वां शिष्य इस श्लोक के माध्यम से कह रहा है |
गेयं गीता नाम
सहस्रंध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम् |
नेयं सज्जन संगे
चित्तं, देयं दीनजनाय च वित्तम् ||27||
अर्थात भगवान विष्णु
के एक हज़ार नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो | संतों के साथ
सत्संग करने में अपने मन को लगाओ और अपने धन से गरीब की सेवा करो |
“|| भज गोविन्दं भज
गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-28
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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