भज गोविन्दम् – श्लोक
सं.-29-
अर्थमनर्थम् भावय
नित्यं, नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम् |
पुत्रादपि धनभजाम्
भीतिः, सर्वत्रैषा विहिता रीतिः ||29||
अर्थात धन अकल्याण
कारी है, इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए |
धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों तक से डरते हैं, ऐसा हम सभी जानते भी हैं |
इस भौतिक संसार में अगर स्त्री के बाद अधिक आसक्ति किसी के प्रति रहती है,
तो वह है धन | शंकराचार्य महाराज कह रहे हैं कि धन अकल्याणकारी है | धन को हम सुख
देनेवाला समझते और मानते हैं | धन से कभी भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता | जब धन का
आगमन प्रारम्भ होता है, तो मनुष्य इसको अधिक से अधिक कमाने के लिए अपने स्वास्थ्य तक
को दांव पर लगा देता है | धन का संग्रह व्यक्ति को भय ग्रस्त कर देता है | धन की
सुरक्षा करना सबसे बड़ी मुश्किल बात बन जाती है | इस प्रकार धन के अर्जन और संग्रह
से व्यक्ति सुखी होने के स्थान पर और अधिक दुःखी हो जाता है | शंकराचार्य महाराज
तो यहाँ तक कह रहे हैं कि धनवान व्यक्ति को अपने पुत्रों तक से डर लगने लगता है | इस
भय के पीछे मूल कारण धन की सुरक्षा को लेकर होता है |
धन को अकल्याणकारी इसलिए कहा गया है
क्योंकि इसमें आसक्त व्यक्ति केवल धन संग्रह में ही लीन होकर रह जाता है, दूसरी
बातों से उसे कोई मतलब नहीं रह जाता | पहले धन का अर्जन होता है, फिर वह अल्प नहीं
रह जाये उसका भी भय बना रहता है | धन का संग्रह इसीलिए करता है क्योंकि व्यक्ति को
धन सदैव ही अपर्याप्त प्रतीत होता है | धन के संग्रह के बाद उसकी सुरक्षा की चिंता
पैदा हो जाती है | इस कारण से व्यक्ति सभी जनों को शक की दृष्टि से देखने लगता है |
जीते जी वह अपने इकट्ठे किये हुए धन को थोडा-बहुत भी किसी को देना नहीं चाहता | धन
को या तो आप भोग सकते हैं अथवा दान कर सकते हैं | भोग और दान में अगर धन को नहीं
लगाया जाये तो फिर उसका नाश होना अवश्यम्भावी है |
संसार के सभी भौतिक सुख हमारे दुखों का
कारण है | जितना ज्यादा हम धन या अन्य भौतिक सुख की वस्तुओं को इकट्ठा करते हैं,
उतना ही हमें उन्हें खोने का डर सताता रहता है | सम्पूर्ण संसार के जितने भी
अत्यधिक धनवान व्यक्ति हैं, वे अपने परिवार वालों से भी डरते हैं | अतः धन के पीछे
भागना छोड़ परमात्मा को भजना चाहिए वही हमें संसार के सभी प्रकार के भय से मुक्त कर
सकता है |
“|| भज गोविन्दं भज
गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
कल श्लोक सं.-30
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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