भज गोविन्दम् –
समापन कड़ी –
एक लम्बे समय से हम आदिगुरू
शंकराचार्य जी महाराज की कृति ‘भज गोविन्दम्’ पर चर्चा कर रहे थे | आज इस समापन
कड़ी में हम इस विवेचन से निकले सन्देश की बात करेंगे | इस सन्देश का बिन्दुवार सारांश निम्न प्रकार है
–
1. केवल धर्म शास्त्र और व्याकरण रटते रहने से कुछ
भी प्राप्त होने वाला नहीं है | सारी उम्र इन शास्त्रों को पढ़ते रहने के लिए भी कम
है, फिर गोविन्द को कब भजोगे ? इसलिए केवल इन शास्त्रों को रटते रहने में कोई सार नहीं
है | इनको रटते रहने के स्थान पर गोविन्द को भजना अधिक सारपूर्ण है |
2. परिवार और संतान के लिए आप तभी तक उपयोगी बने
रहेंगे, जब तक आप उनकी इच्छाएं पूर्ण करते रहेंगे | जिस दिन आपका यह शरीर उनकी
इच्छाओं को पूरी नहीं कर पायेगा, आप उसी दिन से अपने परिवार में उपेक्षित हो
जायेंगे | अतः परिवार आदि का मोह छोड़कर गोविन्द को भजें |
3. स्त्री के प्रति मोह रखना दुर्भाग्य पूर्ण है |
उसका शरीर केवल मांस, मज्जा और वसा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | उसकी सुन्दरता
में फंसने से बचने के लिए उसे इसी रूप में देखें और देवी रूप में उसका सम्मान करें
| स्त्री का मोह छोड़ गोविन्द को भजो |
4. धन और कामनाओं के प्रति आसक्ति न रखते हुए उसका
त्याग करें | त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं है | इनका त्याग ही आपको परमात्मा की ओर
ले जायेगा |
5. अपनी अवस्था के अनुसार हम क्रीड़ा, स्त्री और
चिंता में मगन रहते है, फिर गोविन्द को भजने का कब समय मिलेगा ? इस पर विचार करते
हुए गोविन्द को भजना शीघ्र से शीघ्र प्रारम्भ का देना ही उपयुक्त है |
6. समय पल-पल बीतता जा रहा है | यह जीवन क्षण भंगुर
है | कब शरीर की मृत्यु हो जाये, पता नहीं | अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए हमें
फिर से नया जन्म लेना पड़ेगा | बार-बार जन्म और मरण के चक्र से मुक्त होने का एक ही
मार्ग है, श्री हरि का भजन |
7. संसार के दुखों से भागकर केश बढा लेना, सिर मुंडा
लेना, भगवा वस्त्र धारण कर लेना आदि केवल दिखावा भर है | इनसे कुछ भी प्राप्त नहीं
किया जा सकता | संसार से भागकर व्यक्ति अपना पेट भरने के लिए ऐसे विभिन्न रूप धारण
करता है |
8. कर्मकांड, तीर्थ यात्रा, व्रत और शरीर को कष्ट देने
वाली अनेकों क्रियाओं में उलझने के स्थान पर गोविन्द को भजना अधिक श्रेष्ठ है |
9. साधु और संत जनों के सत्संग से व्यक्ति संसार की
मोह-माया से दूर हो सकता है | सत्संग से व्यक्ति का संसार के प्रति आकर्षण छूट
जाता है | अतः सत्संग करते हुए गोविन्द को भजें |
10. हमें काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि विकारों से
मुक्त होना चाहिए | धन, परिवार आदि की चिंता से मुक्त हो जाना चाहिए | हम चाहे गृहस्थ
बन कर रहें, चाहे संन्यासी बन कर रहें, घर पर अथवा जिस स्थान पर भी रहें, गोविन्द
को भजते रहें |
11. हरि को भजते हुए गुरु से मार्गदर्शन लें और
आत्मज्ञान को प्राप्त हों | यही जीवन का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए |
“भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढमते”
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
पुनश्चः
इस कड़ी के साथ ही इस ‘भज गोविन्दम्’ श्रृंखला
का समापन कर रहा हूँ | नयी श्रृंखला प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ समय के लिए
विश्राम चाहता हूँ | आपका बहुत-बहुत आभार |
|| हरिः शरणम् ||
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