जो भी कर्म आज और
अभी ;बिना दोनों ही कल की सोचे किये जाते हैं,वे सभी कर्म,अकर्म हो जाते हैं |
अकर्म का अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता कि कर्म किये ही नहीं जाये| कर्म न करनेका
अर्थ है जीवन का अर्थहीन हो जाना; जब कि मनुष्य ही नहीं, किसी भी प्राणी का जीवन
अर्थहीन नहीं है, मूल्यहीन नहीं है|यही परमात्मा की हमारे ऊपर असीम कृपा है कि
उसने इस भौतिक संसार में हम सभी प्राणियों के शरीर मूल्यवान बनाये हैं |अतः किसी
भी प्राणी को मूल्यहीन समझना मनुष्य की मूर्खता ही कहलाएगी |संसार के सभी प्राणी कर्म
करने में लगे हुए हैं |मनुष्य और अन्य प्राणियों में कर्म के स्तर का अंतर हो सकता
है परन्तु कर्म करना सभी प्राणियों का प्रमुख लक्षण है |
कर्म, जो हम आज कर
रहे हैं, वे कल में कैसे हो सकते हैं अर्थात वे कर्म भूत और भविष्य में कैसे हो
सकते हैं ? यह बात एक साधारण से उदाहरण से स्पष्ट करना चाहूँगा |पूर्व में कभी एक बार ‘अ’ का
अपमान ‘ब’ कर देता है |उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप आज ‘ब’ उस अपमान का बदला ‘अ’ से
उसका अपमान करके लेता है | हालाँकि यह अपमान करने का कर्म ‘ब’ आज कर रहा है परन्तु
वास्तव में यह कर्म बीते हुए कल के कर्म की प्रतिक्रिया है इसलिए यह कर्म भूतकाल
का माना जायेगा और यह कर्म, अकर्म नहीं हो सकता |प्रत्येक कर्म जो प्रतिक्रिया स्वरूप किया जाता है वह अकर्म हो ही नहीं सकता |ऐसे कर्मों का फल पुनर्जन्म में भोगना ही
होगा |इसी प्रकार आपने पूर्व में किसी कर्म से सुख प्राप्त किया, उसके कारण आपके
मन में वैसा ही सुख और प्राप्त करने की इच्छा पैदा हुई |इस सुख प्राप्त करने की
कामना से जो भी कर्म आप करते हैं ,वे सभी कर्म भूतकाल के अनुभव और भविष्य की आशा
से प्रेरित होंगे, अतःइन सभी कर्मों को सकाम-कर्म की श्रेणी में ही रखा जायेगा |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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