इस प्रकार हमने देखा
कि कर्म करने का जैसे प्रथम कारण मनुष्य का भूतकाल है वैसे ही इसका दूसरा
महत्वपूर्ण कारण भी उसका भविष्य काल ही है |भूतकालके लिए मस्तिष्क में पैदा हुए विचार,
धारणा और स्वभाव कर्म करवाते है, ठीक उसी प्रकार मन में पैदा हुई कामना, लोभ, मोह
और ममता भविष्य के लिए मनुष्य को कर्म करने को विवश करती है |कर्म हम वर्तमान में
कर रहे हैं परन्तु कर रहे हैं-भूतकाल के अनुसार और भविष्य के लिए |यही कर्म-बंधन
है| कर्म-बंधन ही मानव जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है |ऐसे ही किये गए योग-कर्म
मनुष्य को बार-बार इसी धरती पर जन्म लेने को विवश करते हैं और व्यक्ति इन शरीरों
के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाता है |
कर्मों में आसक्ति पैदा
होने का एक प्रमुख कारण व्यक्ति का वर्तमान में न जीकर भूतकाल अथवा भविष्य में जीना
ही है |भूतकाल का कथित अनुभव उसे आत्म-ज्ञान कराने में सबसे बड़ा बाधक है |अनुभव से
और विचारों से जो धारणा पैदा होती है, वे व्यक्ति को अपने भीतर उतरने का , स्वयं
के भीतर प्रवेश करने का अवसर ही पैदा नहीं होने देती |जैसे किसी भी विषय, व्यक्ति,
वस्तु अथवा स्थान के बारे में अगर आप जानने की उत्सुकता रखते हैं तो आपको पूर्व में
जो भी ज्ञान उस विषय आदि के बारे में है ,उसे मिटाना होगा |जब आप ऐसे कथित ज्ञान
से शून्य हो जाओगे तब आपमें उस विषय के बारे में जागरूकता (awareness) पैदा होगी
और यही जागरूकता आपको उस विषय, वस्तु अथवा व्यक्ति के बारे में सही और सटीक
जानकारी उपलब्ध कराएगी |इसीलिए मैंने
पूर्व में कहा है कि आध्यात्मिकता में किसी प्रकार के अनुभव की कीमत दो कौड़ी की भी नहीं होती |गुरु के पास जाने और
उनसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने आपको पूर्ण रूप से तैयार करना पड़ता है अन्यथा
आप ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते |आपको अपना अनुभव और कथित ज्ञान गुरु के आश्रम के बाहर ही विस्मृत करके जाना होगा |तभी आपको गुरु आत्म-ज्ञान के लिए आंदोलित कर सकता
है |
अतः जितने भी कर्म कामना-भविष्य की
और भूतकाल के अनुभव से किये जाते हैं ,वे सभी फल पैदा करने वाले सकाम-कर्म ही होते
हैं |ऐसे कर्मों के जंजाल में आप छटपटाते हुए रह सकते हैं, बाहर निकल नहीं सकते |कर्मों
को अकर्म में बदलने के लिए आवश्यक है कि इस अनुभव और कामना पर आधारित कर्मों से बाहर
निकल कर वर्तमान परिस्थिति में जीते हुए कर्म और वर्तमान के अनुरूप कर्म किये जाये
,जिसमें आपके भूतकाल के अनुभव, भविष्य की
कामना और विचारों का किसी भी प्रकार का योगदान नहीं हो |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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