Saturday, February 21, 2015

कर्म-योग |-27

अकर्म और निष्काम-कर्म (निष्कर्मता) -
Action without reaction is known as” No act”.
                      जो कर्म बिना किसी भी प्रतिक्रिया स्वरूप किया जाता है वह अकर्म कहलाता है |मनुष्य किसी भी कर्म को करने से पूर्व उसके करने या न करने के बारे में गंभीरता से विचार करता है और उससे भविष्य में होने वाले लाभ और हानि का मूल्यांकन करता है ऐसे में किये जाने वाला कर्म अकर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता ,यह तो सकाम-कर्म ही होगा |मनुष्य के मन में विचार भूतकाल के अनुभव की देन है और कामना भविष्य की सम्भावना | अतः जो कर्म विचार करके और कामना पूर्ति के लिए किये जाते हैं वे सकाम-कर्म ही होंगे |संसार में जितने भी मनुष्य है,प्रायः सभी इन सकाम-कर्मों को ही करने में व्यस्त है |वे जो भी कर्म करते हैं उन पर या तो भूत-काल की छाप होती है या फिर भविष्य की सम्भावना नज़र आती है |वर्तमान के परिपेक्ष्य में कोई बिरला ही अकर्म करते हुए दृष्टिगोचर हो सकता है |
                  इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि अकर्म वर्तमान में रहते हुए ही हो सकते हैं, भूत और भविष्य में जीते हुए नहीं |आज मनुष्य की दुर्गति इसीलिए हो रही है; क्योंकि वह सदैव ही भूतकाल या भविष्य में जीना चाहता है ,वर्तमान में नहीं |वह आज की नहीं सोचता बल्कि सदैव ही बीते हुए कल या आनेवाले कल की ही सोचता रहता है |इसी भूत और भविष्य की सोच के मध्य वह एक पेंडुलम या दोलक की भांति डोलता रहता है, दोलन करता रहता है जबकि जीवन को आनंदपूर्वक जीने के लिए एक तरह की स्थिरता चाहिए |यह स्थिरता उसे न तो भूतकाल में मिल सकती है और न ही भविष्य में;न तो यह स्थिरता बीते हुए कल में जाने से मिलेगी और न ही आने वाले कल में |यह स्थिरता इन दोनों के मध्य मिलेगी और इन दोनों का मध्य है वर्तमान अर्थात आज |अतः अगर व्यक्ति को आनंदित रहते हुए जीना है तो उसका एकमात्र उपाय है ;आज में जीना ,वर्तमान में रहना |
क्रमशः 
                      ||हरिः शरणम् ||

                

No comments:

Post a Comment