Monday, February 9, 2015

कर्म-योग |-23

                        इन कर्मों को करने के लिए मनुष्य के विचार (Thoughts ) और धारणाएं (Ideas)  उत्तरदाई होती है |बिना विचारों और धारणाओं के ये सकाम-कर्म सम्पादित ही नहीं होते हैं |व्यक्ति के मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि वह एक पल भी खाली नहीं रह सकता,चाहे आप सो रहे हों या कोई अन्य कार्य कर रहे हो अथवा विश्राम ही कर रहे हो |हर पल आपका मस्तिष्क कुछ न कुछ करने में लगा रहता है |ऐसे में जो कुछ भी उधेड़बुन उस मस्तिष्क के भीतर चल रही होती है उसे हम विचार (Thought) कहते हैं |आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे 99 प्रति शत विचार मात्र कूड़े के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होते |इसके लिए आप एक प्रयोग भी कर सकते हैं |जब आप विश्राम में हो तब आप अपने मस्तिष्क को बाध्य किये बिना जो भी वह विचार कर रहा हो,करने दें| अब इन सब को आप कागज पर लिख डालें, हूबहू |फिर आधे घंटे बाद इसे पढ़े |आपको मेरी बात सत्य लगेगी |आप कल्पना तक नहीं कर सकते कि आपका मस्तिष्क इतनी ऊलजलूल बातें भी सोच सकता है |इसीलिए मैंने कहा  है कि हमारे मस्तिष्क में 99 प्रति शत विचार तो फालतू के होते हैं | ये सब सोच और विचार उन घटनाओं से बनते है जैसी हमने जीवन में कहीं घटित होते देखी है अथवा जिनके बारे में हमने कहीं पढ़ा और सुना होगा |कहने का अर्थ यह है कि विचारों का सम्बन्ध सदैव ही किन्हीं पूर्व घटित घटनाओं से अवश्य ही होता है, चाहे वे कभी घटनाएँ घटित हुई हो, चाहे कहीं और कभी देखी, पढ़ी अथवा सुनी गई हो |जब ऐसे एक ही प्रकार के, एक दूसरे से संबंधित अनेकों विचार घनी भूत हो जाते हैं,तब वे एक प्रकार की धारणा(Idea) का निर्माण करते हैं |इस धारणा के अनुसार ही व्यक्ति फल प्राप्ति के लिए कर्म करता है | इन कर्मों के परिणाम या तो व्यक्ति के पक्ष के होते हैं या फिर विपरीत| इन कर्मों से प्राप्त फल के विवेचन के लिए फिर से मस्तिष्क में विचार उत्पन्न होते हैं और पुनः एक नई संशोधित धारणा का जन्म होता है| धीरे धीरे यही धारणायें व्यक्ति का अनुभव बन जाती है | इन अनुभवों के आधार पर व्यक्ति अपने कथित सिद्धांत और आदर्श बना लेता है | जिस धारणा, अनुभव या सिद्धांत की नींव ही भूतकाल में हो, वह आज के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकता है ? इसी लिए मैं कहता हूँ कि अनुभव की कीमत दो कौड़ी की नहीं होती |कल जो बात सत्य थी, हो सकता है कि आज भी सत्य हो परन्तु वह सत्य उतना सत्य नहीं हो सकता जितना वह कल था | उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन आपको अवश्य ही मिलेगा |इसी प्रकार विचार भी महत्वपूर्ण हैं परन्तु आज उनकी क्या उपयोगिता होगी ,इस पर संशय अवश्य ही रहेगा | 
क्रमशः 
                 ॥ हरिः शरणम् ॥   

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