Saturday, April 25, 2015

मानव-श्रेणी |-9

विषयी-पुरुष (लगातार)--
                       विषयी और पामर पुरुष,दोनों ही अपने अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे रहते है |दोनों का उद्देश्य भी एक ही होता है- जैसे भी हो अपना स्वार्थ पूरा करना |पामर-पुरुष अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी भी सीमा का अतिक्रमण कर सकता है जबकि विषयी व्यक्ति अपनी सीमा का काफी हद तक ख्याल रखता है |पामर-पुरुष संसार के अन्य प्राणियों को दुःख देने में अपना सुख समझता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी  अन्य प्राणी को तब तक दुःख नहीं पहुंचाता है,जब तक कि वह उसकी स्वार्थ पूर्ति में बाधक न  बनता हो |बाधक  बनने पर वह भी किसी भी प्राणी को नुकसान पहुंचा सकता है |यूँ तो इन दोनों ही श्रेणियों के व्यक्तियों को आप आसानी से  पहचान सकते हैं,फिर भी दोनों में कुछ मूलभूत जो अंतर होते हैं ,उन्हें संक्षेप में स्पष्ट किया गया है |बिना किसी विचार और कामना के पामर व्यक्ति कर्म करता रहता है जबकि विषयी व्यक्ति किसी न किसी कामना के वशीभूत होकर ही कर्म करता है |
                  विषयी व्यक्ति में कामनाएं कहाँ से पैदा होती है ? कामनाओं का श्रोत है -इन्द्रियों के विषय |पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है-त्वचा,आँख,नाक,कान और जीभ |इन पांच इन्द्रियों के विषय होते हैं-स्पर्श,रूप ,गंध,शब्द और रस |इन पांचों विषयों के भोग से ही कामनाओं का जन्म होता है |इन विषयों से सम्बंधित पाँच इन्द्रियां ही  व्यक्ति को सम्बंधित विषयों के भोग उपलब्ध करवाती है |इन्द्रियां सीधे ही यह भोग व्यक्ति को उपलब्ध नहीं करवा सकती बल्कि पांच कर्मेन्द्रियों के  द्वारा ही भोग उपलब्ध करवाना  संभव होता है | पाँचों कर्मेन्द्रियों द्वारा किये जाने वाले कार्यों को ही कर्म कहा जाता है |जिस विषय को भोगने में व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है ,उस विषय को पुनः भोगने की इच्छा पैदा होती है |इस इच्छा को ही कामना कहा जाता है |
क्रमशः
                                                || हरिः शरणम् ||

Saturday, April 18, 2015

मानव-श्रेणी |-8

 विषयी-पुरुष-
                             इस संसार में अधिकतम आबादी विषयी व्यक्तियों की है |इस श्रेणी के व्यक्ति सदैव ही स्वार्थ में रत रहते हैं |हालाँकि कभी कभी ऐसे व्यक्ति भी नियमों और शास्त्रों का उल्लंघन कर जाते हैं परन्तु तुरंत ही इसका परिमार्जन करने का विचार भी कर लेते हैं |हालाँकि किये गए कर्म ,चाहे वे नियमानुसार हो अथवा नियम विरुद्ध,सबका कर्म-फल तो भावी जीवन में मिलना तय है  |कर्म और कर्म-फल कभी भी नष्ट नहीं होते हैं ,चाहे इन कर्मों का फल भोगने के लिए कितने ही जन्म लेने पड़े |नियम विरुद्ध तो कर्म पामर व्यक्ति भी करते हैं और विषयी भी |परन्तु दोनों में बहुत ही बड़ा मूलभूत अंतर होता है |पामर श्रेणी के व्यक्तियों द्वारा किये गए शास्त्र और नियम विरुद्ध कर्मों को वे शास्त्रोक्त और नियम के अनुसार किये गए मानते हैं जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्मों को  करने के समय ही यह जनते भी है कि किये जा रहे कर्म शास्त्र और नियम विरुद्ध ही है |पामर-व्यक्ति इन कर्मों को अनवरत चालू रखता है जबकि विषयी व्यक्ति ऐसे कर्म यदा कदा ही करता है | पामर व्यक्ति शास्त्र विरुद्ध कर्म जानबूझकर और शास्त्र सम्मत मानते हुए करता  है जबकि एक विषयी पुरुष ऐसे कर्मों को यह जानते हुए भी कि ये कर्म  शास्त्र विरुद्ध है फिर भी अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए , अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर करने को विवश होता है |
                                 पामर-व्यक्ति कभी भी विषयी की तरह व्यवहार  नहीं कर सकता  क्योंकि वह सदैव ही क्रोध से उबलता रहता है,जबकि विषयी व्यक्ति को क्रोध कभी कभी और प्रायः दिखावे के  तौर पर आता है |विषयी व्यक्ति को क्रोध प्रायः अपनी कामनाओं की पूर्ति न  हो पाने के कारण आता है ,शेष परिस्थितियों में वह केवल अपनी कामनाओं की पूर्ति करने हेतु कर्म करने में ही लगा रहता है |जबकि पामर मनुष्य का क्रोध करते रहना  एक स्वभाव बन जाता है |
क्रमशः
                                                      || हरिः शरणम् ||

Tuesday, April 14, 2015

मानव-श्रेणी |-7

पामर-पुरुष(लगातार)-
                  स्वार्थ,पर-उत्पीड़न और अकारण क्रोध पामर-श्रेणी के मनुष्यों के तीन प्रमुख लक्षण है । वैसे जो लक्षण संत महापुरुषों के हैं ;उनके ठीक विपरीत लक्षण इन पामर-श्रेणी के मनुष्यों के होते हैं  । इनको पहचान लेना बहुत ही आसान है । संसार के सभी ऐसे कृत्य जो शास्त्रोक्त नहीं है और नियम विरुद्ध है,वे सभी इन मनुष्यों के द्वारा सम्पादित किये जाते हैं। ऐसे व्यक्ति दिखावे के तौर पर बहुत ही शक्तिशाली होते हैं  परन्तु भीतर से सदैव ही भय ग्रस्त रहते हैं । इनको अपने शरीर के अतिरिक्त किसी अन्य के बारे में किसी भी प्रकार की सोच नहीं होती है । सत्य,अहिंसा,दया और धर्म से इनका दूर दूर तक किसी भी  प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता है । बाहरी और आंतरिक शुद्धि का कोई महत्त्व नहीं होता है । अगर  दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यह कहा जा सकता हैं कि एक पशु और पामर-व्यक्ति में सिवाय शारीरिक रचना के कोई मूलभूत अंतर नहीं होता है ।
                        पामर श्रेणी के व्यक्ति इस संसार,समाज और परिवार के लिए एक बोझ के अतिरिक्तं कुछ भी नहीं होते हैं । ऐसे व्यक्तियों से संतुष्ट  इस संसार में कोई भी व्यक्ति नहीं होता है । यहाँ तक कि एक पामर व्यक्ति से दूसरा पामर प्रकृति का व्यक्ति भी संतुष्ट नहीं हो सकता । इतिहास पामर-मनुष्यों के मध्य  हुई शत्रुता का गवाह है । राक्षसी प्रवृतियों के दो समूहों के मध्य सदैव ही युद्ध होते रहे हैं । इन युद्धों का उद्देश्य कभी भी नीति और धर्म नहीं रहा है बल्कि अपना प्रभुत्व स्थापित करना ही रहा है ।अजामिल,अंगुलिमाल,रावण और कंस आदि इनके उदाहरण है ।  अजामिल और अंगुलिमाल ने सत्पुरुषों का सानिध्य पाकर अपने आप को परिवर्तित कर लिया जबकि रावण और कंस सत्पुरुषों का साथ मिलने के बावजूद भी अपने आपको अहंकारवश परिवर्तित नहीं कर सके । अगर इन्होने भी अपने स्व का,अपने अहं का  त्याग कर दिया होता तो इतिहास में एक संत के रूप में स्थापित हो गए होते ।
                          पामर-श्रेणी के व्यक्तियों के बारे में संक्षेप में हमने विचार किया । लिखने को बहुत कुछ लिखा जा सकता है परन्तु ऐसे पुरुषों की प्रकृति जानने के लिए मात्र इतना ही पर्याप्त होना चाहिए । कल से हम दूसरी श्रेणी अर्थात विषयी मनुष्यों के बारे में चर्चा प्रारम्भ करेंगे ।
क्रमशः
                                                             ॥ हरिः शरणम् ॥       

Saturday, April 11, 2015

मानव-श्रेणी |-6

पामर-पुरुष -(लगातार)
                  राम और रावण के कृत्यों को भूतकाल के परिपेक्ष्य में विश्लेषित करने पर ही अनुभव होता है कि रावण का कृत्य अनुचित था । परन्तु पामर श्रेणी के मनुष्यों को इससे कोई मतलब नहीं होता कि इन व्यक्तियों के पूर्व-कर्म क्या कहते हैं?उन्हें तो अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी घटना का विश्लेषण करना होता है । उसी सुविधा को दृष्टिगत वे अनुचित या उचित का निर्णय करते हैं । इसमे वे  न तो किसी शास्त्र का  सहारा लेते हैं और न ही किसी नियम और कानून का । उनके लिए तो अपना व्यक्तिगत स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है ।
                 अपने स्वार्थ के वशीभूत होना पामर श्रेणी के पुरुष का प्रथम लक्षण है । दूसरा लक्षण है -पर-उत्पीड़न । पामर श्रेणी के मनुष्य दूसरे को पीड़ित कर आनंद  का अनुभव करते हैं ।दूसरे व्यक्ति अपना जीवन आराम से न बिता सके,यही उनका एक मात्र उद्देश्य होता है । उसे अपने जीवन की कतई चिंता नहीं होती परन्तु वे किसी भी अन्य व्यक्ति को सुखी नहीं देख सकते । पडौसी का सुख भी उन्हें दुखी कर देता है  । राह चलते मनुष्य  को भी परेशान करना उसकी आदत बन जाता है ।ऐसे पामर मनुष्य न तो इस लोक में आराम से रह सकते हैं और न ही अन्य लोकों में ।
                 तीसरा लक्षण पामर-श्रेणी के  मनुष्यों का है-अकारण क्रोध । इस श्रेणी के व्यक्ति किसी भी व्यक्ति या जीव पर छोटी छोटी बातों को लेकर बहुत ही क्रोधित  हो जाते हैं और अनेकों बार  तो बिना किसी कारण के भी वे क्रोधित होकर उबल पड़ते हैं । पामर-श्रेणी के मनुष्यों से की गई मित्रता इसी कारण से घातक कही गई है ।  न जाने वे कब आपसे खुश होकर प्रशंसा करने लगे और कब आप पाकर क्रोधित हो जाये । अतः ऐसे मनुष्यों से न तो मित्रता अच्छी है और न ही शत्रुता । इनको तो दूर से ही प्रणाम करना अच्छा है ।
क्रमशः
                                        ॥ हरिः शरणम् ॥  

Wednesday, April 8, 2015

मानव-श्रेणी |-5

पामर-पुरुष-
             पामर श्रेणी उन मनुष्यों की मानी गई है ,जो वास्तविकता को एकदम से विपरीत समझते हैं । इस संसार में जो कुछ भी शास्त्रोक्त  है,जिसे हम नियम के अनुसार समझते हैं ,जिस कार्य को इस भौतिक संसार में  निम्नतम श्रेणी का माना गया है  साधारण पुरुष जिस कार्य को अनुचित मानते हैं ,इस श्रेणी के व्यक्ति उसे उचित  मानते हैं । आपको एक महत्वपूर्ण बात बताता हूँ ,उचित और अनुचित में विभाजन केवल मात्र एक महीन रेखा,बहुत ही हल्की  खिंची गयी रेखा करती है । इस अति बारीक रूप से हुए विभाजन के कारण ही पामर मनुष्य अनुचित को उचित बताने में सफल हो  जाते  हैं । उनका यह तर्क एक साधारण मनुष्य को कई बार ही नहीं बल्कि प्रायः ही  अनुचित को उचित मानाने को विवश कर देता है ।
                   इस विभाजन का अनुचित फायदा उठाने का एक उदाहरण भी बताता  हूँ । राम ने अपनी वनवास अवधि में सूपनखा का मानसिक तौर पर एक प्रकार का उत्पीडन किया था ।  इस दौरान लक्ष्मण ने उसके नाक और कान काट डाले थे । जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप सूपनखा के भाई ने प्रतिशोध लेते हुए राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था । इस  प्रकरण का जब पामर श्रेणी का व्यक्ति विश्लेषण करता है तो उसे रावण का यह कृत्य उचित लगता है । परन्तु क्या उसका ऐसे विश्लेषण करना सही  है?आँख मूँद कर राम की भक्ति करने वाले व्यक्ति रावण  के इस कृत्य को अनुचित बताएँगे और बुद्धिमान व्यक्ति जो  राम को भगवान नहीं एक साधारण व्यक्ति समझते हैं वे रावण के इस कृत्य को , समस्त जानकारी प्राप्त करने के बाद  ही अनुचित बताएँगे । पामर  श्रेणी के मनुष्य इस घटना की एक balance sheet बनाते हुए लेना-देना बराबर हुआ मानकर रावण के इस कृत्य को सही ठहराएंगे ।
क्रमशः
                                       ॥ हरिः शरणम् ॥ 

Sunday, April 5, 2015

मानव-श्रेणी |-4

                            जिस प्रकार अंगुलिमाल का ह्रदय परिवर्तित हुआ उसी तरह ही एक अति क्रूर डाकू का ह्रदय भी परिवर्तित हुआ,जो सिद्ध होकर महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात  हुए । वाल्मीकि को भी,जब वे डाकू थे एक सरल ह्रदय गुरु मिले थे जिन्होंने उसे नाम-जप  का गुरुमंत्र दिया था । डाकू ने कहा  कि वह एक पामर श्रेणी का मनुष्य है और बहुत चाहते हुए भी "राम" शब्द का उच्चारण करते हुए परमात्मा का  स्मरण  नहीं कर सकता । तब उनके  गुरु ने कहा कि तू अपने मुख से राम शब्द का ही तो उच्चारण नहीं कर सकता न ,उसके स्थान पर तूं " मरा-मरा" शब्द का उच्चारण कर। डाकू द्वारा मरा-मरा का उच्चारण किया गया  जो सतत उच्चारण से राम-राम उच्चारित होने लगा । वाल्मीकि के इसी सन्दर्भ को गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस  में बड़े ही  सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है । वे लिखते हैं-
                               "उलटा  नाम जपत जेहि जाना ।  बाल्मीकि  भये ब्रह्म समाना ॥ "
                      मैंने यह दो उदाहरण पामर श्रेणी में अवस्थित दो व्यक्तियों के इसलिए दिए हैं कि जब निम्नतम श्रेणी के मनुष्य भी सिद्ध पुरुष में स्वयं को परिवर्तित कर सकते हैं तो फिर विषयी श्रेणी के व्यक्ति क्यों नहीं ? इस संसार  में सब कुछ होना संभव है । आवश्यकता है आपकी लगन की । जब तक मनुष्य में स्वयं को परिवर्तित करने की चाह नहीं होगी ,तब तक उसका परिमार्जन संभव नहीं है । इस संसार में सर्वाधिक संख्या विषयी श्रेणी के मनुष्यों की  है । वे इस संसार में ही इतने मगन है कि उन्हें अपनी श्रेणी में बने रहना ही सर्वश्रेष्ठ लगने लगा  है । कल की ही बात है,मेरे एक मित्र ने पूछा कि जो आप ऐसी बातें सब को बता रहे हैं  और लिख भी रहे है,जो सब लोग जानते है । आज के समय सब ज्ञानी है  ,फिर आप अपनी उर्जा ऐसे लेखन में क्यों व्यय कर रहे हैं? मैंने  कहा कि सब जानते हैं,यह मैं भी जानता हूँ । परन्तु इस`संसार को हम विषयी लोग एक लाठी के रूप में पकड़ कर खड़े  है,एक सहारे के रूप में । मैं जान चूका हूँ कि संसार का आश्रय लेना ऐसे ही है जैसे लाठी के स्थान पर सांप  को पकड़ लेना और उसे अपना सहारा समझ लेना । जब मुझे यह संसार लाठी के स्थान पर सांप नज़र आने लगा है तो मेरा  कर्तव्य बनता है कि मैं सबको यह बात समझाऊं । अगर लोग फिर भी नहीं सुनते तो इसके लिए  मैं उत्तरदाई नहीं हूँ । मैं तो मात्र अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ ।मेरे द्वारा समझाने के बाद भी कोई व्यक्ति अगर विषयी की श्रेणी में  ही बना रहना चाहता हैं तो फिर उसके लिए केवल परमात्मा से ही प्रार्थना की जा सकती है ।
                 खैर,यह सब तो चलता रहता है । कल से हम एक एक करके सभी मानव-श्रेणियों परविचार करेंगे ।
                                ॥ हरिः शरणम् ॥  

Thursday, April 2, 2015

माँ - परमात्मा का एक व्यक्त रूप ।

मेरी  माँ, मेरा भगवान ।वक्त से  अव्यक्त हो गई है ।मेरी माँ  मेरे लिए परमात्मा का एक  व्यक्त  रूप थी।आज  उसके  अव्यक्त  हो जाने पर भी  मैं  जानता हूँ कि  वह  मेरे पास  ही है ।परमात्मा  अपने  बच्चों  से  कभी  भी  दूर हो  नहीं सकता ।भला,  माँ की  कमी  कौन  पूरी  कर सकता है? वक्त से अव्यक्त हो  जाना  और फिर से व्यक्त  हो जाना  उसी  परमात्मा का एक  खेल है ।अतः मैं  अपनी मां के  जाने का  शोक बिल्कुल भी नहीं  करूंगा  क्योंकि  मेरी  माँ ने  मुझे  जीवन में इसी तरह  की  शिक्षा दी  थीं ।
         परमात्मा  मेरी माँ को अपने चरणों में स्थान प्रदान करे ।
                ।।   हरि: शरणम् ।।