Saturday, October 31, 2015

सनातन शास्त्र-5

                         हमारे शास्त्र हमारे लिए जीवन है | बिना शास्त्रों  के हम निर्जीव हैं |मनुष्य और पशु दोनों में एक मात्र अंतर यही है कि पशु किसी भी प्रकार का अध्ययन नहीं कर  सकता जबकि मनुष्य की बुद्धि इतनी विकसित है कि वह अध्ययन कर अपने भले बुरे को समझ सकता है | यह क्षमता उसके लिए अपना जीवन सुगमता और आनंदपूर्वक जीवन जीने के लिए परमात्मा का एक आशीर्वाद  है |दूसरा आशीर्वाद परमात्मा का हमारे ऊपर है कि उसने हमें इतने अच्छे शास्त्र प्रदान किये है |संसार में आज तक क्या हुआ है, भविष्य में क्या होने वाला है, आपको अपने जीवन में क्या करना या क्या नहीं करना चाहिए,संसार में जो और जैसे घटित हो रहा है उसका राज़ क्या है आदि सभी ज्ञान और विज्ञान हमारे सनातन शास्त्रों में छुपा हुआ है |आवश्यकता केवल हमारी रुचि और लगन की है |अगर हमारी लगन और आस्था इनमे हो तो फिर समुद्र मंथन से प्राप्त अमूल्य वस्तुओं की तरह हम भी इन शास्त्रों का मंथन कर बहुमूल्य ज्ञान परमात्मा के आशीर्वाद फलस्वरूप प्राप्त कर सकते हैं |
                     जिस प्रकार दही को मंथन प्रारम्भ करते ही कुछ पलों में मख्खन प्राप्त नहीं होता है उसी प्रकार सनातन शास्त्रों का अध्ययन प्रारम्भ करते ही तुरंत ही इसके रहस्य प्रकट  नहीं होते हैं |मख्खन प्राप्त करने के लिए जैसे  धैर्य रखते हुए दही को तन्मयता के साथ मथना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार शास्त्रों का बार बार अध्ययन करते हुए ही उसमे  समाहित ज्ञान को प्राप्त कर आलोकित हुआ जा सकता है |   अतः प्रथमतः हमें इन शास्त्रों के प्रति आस्था और विश्वास रखना होगा | उसके बाद धैर्य के साथ उसका अध्ययन प्रारम्भ करना होगा | प्रथम बार अध्ययन करने पर वे नीरस प्रतीत होते हैं परन्तु सतत अध्ययन के फलस्वरूप जब आपकी रूचि इनमे बनने लगती है तब आपको इसके अध्ययन में एक प्रकार के अतुलनीय आनंद की अनुभूति होने लगती है |जब आपको इनमे आनंद आने लगे तब आप अपनी बुद्धि को सूक्ष्म करते हुए इन शास्त्रों के प्रत्येक श्लोक में गहरे झांकने का प्रयास करें, इनमे आपको विलक्षणता दिखाई देगी |
                         प्रत्येक बार आपको अध्ययन  करने से   नए ज्ञान की अनूभूति होगी | इस प्रकार सतत अध्ययन से आप इन सनातन शास्त्रों में समाहित ज्ञान और विज्ञान को समझ पाएंगे, यह मेरा विश्वास है | कल से हम विभिन्न शास्त्रों में समाहित ज्ञानयुक्त श्लोकों पर विवेचन प्रारम्भ करेंगे, जिससे आपको इन शास्त्रों को समझने में सहायता मिल सके | प्रारम्भ हम भगवान  श्रीकृष्ण की वाणी  श्रीमद्भागवतगीता से करेंगे |
                                                        || हरिः शरणम् ||

Tuesday, October 27, 2015

सनातन शास्त्र-4

            जब व्यक्ति को चारों और अन्धकार दिखाई देता है, कोई रास्ता नज़र नहीं आता तब एक मात्र मार्गदर्शन देने वाला हमारा सद् साहित्य ही होता है |  ऐसे में हमें सदैव ही इनका सम्मान करना चाहिए | इसी कारण से हमारे पूर्वजों ने साहित्य को सबसे बड़ा मित्र कहा है |आपके बुरे  समय में आपके परिवार जन,  मित्र आदि सभी साथ छोड़ सकते हैं परन्तु सद् ग्रन्थ कभी भी आपका साथ नहीं छोड़ सकते |अतःजीवन में इन शास्त्रोंका बहुत ही महत्त्व है | जीवन के प्रारम्भ से ही जिन्हें पुस्तकें आदि पढ़ने की आदत होती है, उन्हें आज तक मैंने अपने जीवन में विपत्तियों से घबराते हुए नहीं देखा है |उन्हें ये शास्त्र ही घोर अँधेरे में भी मार्ग दिखाते हैं | आज इस आपाधापी युक्त  एकाकी जीवन में जहाँ केवल अपना स्वार्थ ही मित्रता है, शास्त्र अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए हैं | इनका उपयोग जो भी कोई व्यक्ति करेगा ,उसका जीवन आनंदमय होगा |
                 इस प्रकार हम देखते हैं की हमारे जीवन को अवसाद से आनंद तक ले जाने वाले हमारे शास्त्र ही हैं |इनकी उपेक्षा करना जीवन की उपेक्षा करना है | आप श्रीमद्भागवत गीता को ही ले लीजिये | गीता का प्रथम अध्याय विषाद योग नाम का है | इस अध्याय में अर्जुन के अवसादग्रस्त हो जाने का उल्लेख है | इसमे व्यक्ति जब जब अवसादग्रस्त हो जाता है,तब तब वह कैसा व्यवहार और कैसी कैसी बातें करता है,सब का विवरण दिया गया है | दूसरे अध्याय  से जब भगवान श्री कृष्ण उससे बात करना प्रारम्भ करते हैं तब अठारहवें अध्याय तक आते आते अर्जुन अवसाद से बाहर निकल आता है | इसीलिए गीता को अवसाद से आनंद तक की यात्रा कहा गया है |
                    इसी प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण में श्रृंगी ऋषि के शाप से आहत राजा परीक्षित अवसादग्रस्त हो जाता है | उसे श्राप मिलता है कि आज से सात दिन बाद सर्पों का राजा तक्षक उसे डस लेगा जिस कारण से वह तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा | परीक्षित इस श्राप से विचलित होकर अवसाद में आ जाता है | वह अपना राज पाट त्यागकर वन में आ जाता है |वहां गंगा किनारे उसे शुकदेव मुनि ज्ञान देकर संभावित मृत्यु के भय से उत्पन्न अवसाद से बाहर निकाल लाते हैं |
                                  अवसादग्रस्त होने का मूल कारण  कहीं भीतर गहरे में छुपा कोई भय होता है | जब उस भय को समाप्त कर दिया जाये तो व्यक्ति अवसाद से  बाहर निकल आता है |हमारे समस्त सनातन शास्त्र व्यक्ति को भय से मुक्त करने वालें  है | यही हमारे धर्म शास्त्रों की विशेषता है |अतः इनका समय समय पर अध्ययन करते रहना बड़ा ही लाभप्रद होता है | जीवन में सद् शास्त्र की बताई राह पकड़ें | यही Art of life है, जीवनको आनंदपूर्वक जीने की कला है |
क्रमशः
                                          || हरिः शरणम् ||

Thursday, October 22, 2015

सनातन शास्त्र-3

                  हमारे धर्म-शास्त्र हमें अपनी जीवन शैली को सुधारने और सही शैली अपनाने का मार्ग दिखाते हैं । मध्य काल, जब इस देश पर विधर्मियों ने आक्रमण करते हुए भारतीय सनातन संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने का असफल प्रयास किया था उस काल में हमारी सनातन संस्कृति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी । उस अवधि में कथित ज्ञानियों ने हमारे धर्मग्रंथों की व्याख्या उन विधर्मियों के  प्रभाव में आकर अनुचित प्रकार से करना प्रारम्भ कर दिया था | यही कारण है कि हमारी आज की युवा पीढ़ी इस अनुचित व्याख्या को सही मान बैठी है |आज हमें इसी युवा पीढ़ी को हमारे सनातन शास्त्रों का सही रूप दिखाने की आवश्यकता है | शास्त्रों में वर्णित ज्ञान को अज्ञान कहकर प्रचारित किया जा रहा  है | अगर यही सब कुछ चलता रहा तो एक दिन हमारी इस भावी पीढ़ी का सनातन धर्म शास्त्रों की तरफ वापिस लौटना असंभव हो जायेगा | आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं,वह एक ऐसा दौर है जब अधर्म को धर्म कहते हुए प्रचारित किया जा रहा है |धर्म की सही व्याख्या, धर्म का सही दर्शन हमें हमारे धर्म शास्त्र ही करा सकते हैं | धर्म विज्ञानं का विषय नहीं है,यह तो केवल एक राह है जिस पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन को सुखपूर्वक जी सकता है |
                     आज चारों ओर अभाव और अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है | नई पीढ़ी को अपना जीवन सुगमता पूर्वक जीने की राह दिखाई नहीं दे  रही है | उसमें आत्मबल का अभाव निरंतर बढ़ता ही जा रहा है |इस आत्मबल के अभाव के कारण वह भी अर्जुन की तरह ही विषाद ग्रस्त हो गया है | उसको भी एक कृष्ण की तलाश है, जो उसके जीवन में आकर गीता सा ज्ञान देकर जीवन को रस और उमंग से भर दे |परन्तु यहाँ इस संसार में प्रत्येक अवसादग्रस्त अर्जुन को श्री कृष्ण  जैसा सारथी उपलब्ध नहीं हो सकता , उन जैसा कोइ और  गुरु नहीं मिल सकता | आज के समय में उसे हमारे धर्म-ग्रन्थ ही सही राह दिखा सकते हैं |अतः उनकी धर्म ग्रंथों में रुचि पैदा करना और भी अधिक आवश्यक हो जाता है |
                       जीवन में अभाव किसको नहीं है ? आज तक कम से कम मुझे तो एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जो कहदे कि मैं अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट हूँ |यह असंतुष्टता आखिर है क्यों ? हमारी जीवन शैली इन आक्रमणकारी विधर्मियों ने ऐसी बना दी है कि हम जीवन भर संतुष्ट हो ही नहीं सकते | इस जीवन में अभावों ही अभावों का ही स्थान है क्योंकि हमारा स्वभाव ही ऐसा बन गया है कि संसार  की समस्त धन दौलत, रिद्धि  सिद्धियाँ और ऐशो आराम भी हमें संतुष्ट नहीं कर सकते | इसका एक बड़ा ही महत्वपूर्ण कारण है | हम संतुष्टि की खोज में भटकते हुए सारा संसार  छान रहे हैं |हमें वह वस्तु चाहिए जो हमें अभावग्रस्त नहीं रहने दे | भला वह इस संसार में कैसे मिल सकती है ? हमारे समस्त शास्त्र कहते हैं कि संसार से आप वह प्राप्त करने की कामना कर रहे हैं जिसकी पूर्ति करना संसार के बस में है ही नहीं | संसार स्वयं अभाव का दूसरा नाम है | भला संसार से आप अपना अभाव दूर करने की कामना कैसे कर सकते हैं ?यह तो वही बात हो गई कि  आप एक निर्धन व्यक्ति से धन देने की याचना करते हैं |
क्रमशः
                                || हरिः शरणम् ||

Saturday, October 17, 2015

सनातन-शास्त्र-2

                              सनातन धर्म के जितने भी शास्त्र हैं , वे किसी एक व्यक्ति के विचार मात्र नहीं है |आप चाहे कोई सा भी धर्मग्रन्थ उठा लीजिये | केवल वेद ही ऐसे है जिन्हें अपौरुषेय कहा जाता है | वेद परमात्मा के द्वारा कहे गए हैं | जबकि शेष अन्य शास्त्र किन्ही व्यक्तियों की आपस में हुई और की गई धर्मचर्चा पर आधारित हैं |कहने को भले ही कह दिया जाये कि भागवत महापुराण महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित है अथवा योगवासिष्ठ  महर्षि वसिष्ठ द्वारा लिखी गई है परन्तु इनका अध्ययन करने पर पता चलता है कि इनमें भी महापुरुषों के मध्य हुई चर्चाओं का संकलन है |अतः इन ग्रंथों की उपयोगिता कहीं अधिक है   | जब किसी एक व्यक्ति के विचार पर कोई ग्रन्थ आधारित होता है तब उस ग्रन्थ में मात्र उस व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत विचार ही समाहित किये हुए होते हैं | परन्तु जब विभिन्न महात्माओं की आपस की चर्चा और विवेचन उस ग्रन्थ के लेखन का आधार होता है, तब उसकी उपयोगिता और स्वीकार्यता सर्वाधिक होती है |
                             संसार में जितने भी अन्य पंथ है ,वे सभी किसी न किसी एक व्यक्ति के विचारों और संदेशों को आगे बढाने और प्रचारित करने के लिए बनाये गए हैं |उस पंथ के पथ पर चलने वालों के लिए उस व्यक्ति के विचारों और संदेशों को मानना आवश्यक होता है | उस व्यक्ति के विचार भले ही आज के समय के अनुकूल नहीं हो और भले ही आपके विचार उस व्यक्ति के विचारों से मेल नहीं खाते हों , आपको कोई अधिकार नहीं होता है कि आप उन पुरातन विचारों का विरोध करें | सनातन धर्म शास्त्रों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता | समयानुसार इनमें और इनकी व्याख्या में परिवर्तन होता रहा है |आप इन ग्रंथों में समाहित प्रत्येक ज्ञान कण को मानने को विवश नहीं हैं | इन ग्रंथों को पढ़कर,इनका मनन करने के उपरांत आपका एक अलग ही प्रकार का चिंतन बनता है, जो आपके स्वयं के स्वभावानुसार होता है, न कि उस ग्रन्थ के रचनाकार के अनुसार | यही विशेषता सनातन धर्म शास्त्रों को सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है | आप उस चिन्तन के अनुसार उस धर्म ग्रन्थ की विवेचना कर सकते हैं | इस प्रकार विभिन्न व्यक्तियों के चिंतन के अनुसार उनके द्वारा की गई शास्त्रों की व्याख्याएं किसी नए व्यक्ति को अपना अलग ही चिन्तन विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है |इस प्रकार हमरे शास्त्रों की की गयी विभिन्न व्याख्याएं इन्हें समझने में एक आधार प्रदान करती हैं | श्री मद्भागवत गीता जो कि श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान में हुआ संवाद मात्र है परन्तु विभिन्न विद्वजनों द्वारा उनके अपने चिंतन के आधार पर की गयी व्याख्याओं ने इस ग्रन्थ की उपयोगिता को विशिष्ठ स्थान प्रदान किया है |
                       सनातन धर्म शास्त्रों की संख्याएं और प्रत्येक ग्रन्थ की विशालता अपने आप में एक अलग ही स्थान रखती हैं | हमारे यहाँ चार वेद हैं, 18 पुराण है ,छः शास्त्र हैं ,अनेकों उपनिषद् है , वे सभी प्राचीन माने गए हैं | श्री मद्भागवत गीता भी एक उपनिषद् है | इन सबके अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण, गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस, अष्टावक्र गीता,अध्यात्म रामायण , योगवासिष्ठ आदि असंख्य ग्रन्थ है | इतना ही नहीं , इन विभिन्न ग्रंथो पर की गई टीकाएँ भी हमारे यहाँ प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं | इन सबका अध्ययन करना एक बहुत बड़ी बात है |
क्रमशः
                                    || हरिः शरणम् ||

Tuesday, October 13, 2015

नवरात्रि उत्सव |

                           हमारी भारतीय संस्कृति बड़ी ही उत्सव मनाने वाली है | इस जीवन के प्रतिदिन को उत्सव में परिवर्तित कर देना ही इस संस्कृति  का मूल मन्त्र है | जीवन में अवसाद को  सदैव ही दूर रखें और आनन्द में बहते रहें ,यही हमारी संस्कृति और शास्त्रों की प्रेरणा है |अतः हमारे इस उत्सव को हम इसी प्रकार आनंद के साथ मनाएं  और आ रही कुरीतियों से अपने आप को दूर रखें |
                     आधुनिक जीवन में हमारे उत्सव मनाने की परम्परा भी प्रभावित हुई है | आनंद प्राप्त करने के अतिरेक में आज की युवा पीढ़ी भ्रमित हुई जा रही है | उसे भ्रमित होने से बचाने का प्रयास आज की महती आवश्यकता है |अतः हम सबका दायित्व है कि हम अपने उत्सवों की परम्परा के वास्तविक स्वरुप से नई पीढ़ी का परिचय कराएँ और उनको एक अनुशासन में रहने की प्रेरणा दें |
                     आप सभी को शारदीय नवरात्रि की शुभकामनाएं |
                                               || हरिः शरणम् ||

Wednesday, October 7, 2015

सनातन-शास्त्र-1

                     हमारा सौभाग्य है कि हम इस संसार में एक मनुष्य के रूप में पैदा हुए हैं |मनुष्य, अर्थात जिसके पास मन हो | मन, जिसके पास जीव के द्वारा किये जाने वाले कर्मों की सत्ता हो |बिना मन के इस संसार में रहने और कुछ कर पाने की कल्पना करना तक असंभव है |मन की  उपस्थिति से ही हम अपने आप को मनुष्य कहते हैं |बिना मन के शेष 84 लाख योनियां ही है | उन सबसे अलग केवल मात्र एक योनि ही है जिसके पास मन है,और वह है मनुष्य | जिस मनुष्य ने मन का किसी भी प्रकार उपयोग नहीं किया वह मनुष्य अपने आपको मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है |अतः गर्व कीजिये , स्वयं के मनुष्य होने का अन्यथा इस संसार में अन्य प्राणी भी शेष सभी वे कर्म करते ही हैं,जो मनुष्य भी करता है सिवाय अपने मन में सोचे गए कर्म के |मन ही मनुष्य को उन्नति अथवा अवनति तक ले जा सकता है |
               मनुष्य के रूप में इस संसार में आने के बाद हमारा दूसरा सौभाग्य यह है कि हम इस भारत भूमि में जन्में है | भारत भूमि, पृथ्वी का वह भाग जहाँ पर परमात्मा को जानने वाले और उसमे विश्वास करने वालों की संख्या सर्वाधिक है | जहाँ परमात्मा ने मनुष्य के रूप में अवतरित होकर लीलाएं की है | इस भूमि पर देवी स्वरूपा नदियाँ कलकल का नाद करती हैं |संसार के किसी भी भाग में छःऋतुएं नहीं होती, सिवाय भारत के, जिनसे प्राप्त होने वाले आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता | हरीतिमा से युक्त वन यहाँ की शोभा द्विगुणित कर देते हैं |हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं और उनकी गुफाओं में बैठे साधनारत महात्मा लोग यहाँ के आध्यात्मिक सौन्दर्य का वर्णन करते हैं |अतः यहाँ की धरती पर जन्म लेना सौभाग्य से कम कैसे हो सकता है ?भारत का अर्थ है-भा + रत | भा अर्थात प्रकाश, ज्ञान का प्रकाश और रत अर्थात प्राप्त करने को उद्द्यत | भारत, जहा प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान रूप प्रकाश को प्राप्त करने को उद्द्यत रहता है |
                   तीसरा हमारा सौभाग्य यह है कि इस पवन भूमि पर हम एक सनातन धर्मावलम्बी के परिवार में पैदा हुए हैं | सनातन धर्म अर्थात वह धर्म जो आदि काल  से चला आ रहा है , चल रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा | सनातन परमात्मा है और सनातन ही यह धर्म है |वह धर्म, जो मानव को मानव का सहयोगी बनाता है, हिंसा से कोसों दूर है , सत्य के मार्ग पर चलने की सदैव ही प्रेरणा देता है और सबसे बढकर तो यह बात है कि सनातन धर्म प्रत्येक जीव , जीव ही नहीं सर्वस्व में परमात्मा होने की बात कहता है | ऐसा धर्म ही सनातन हो सकता है | हमें गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे धर्म में विश्वास करने वाले हैं और हम ऐसे उच्च कोटि के धर्म के मार्ग पर चलने वाले हैं |हमारे ऋषि मुनियों ने बिना किसी लोभ-लालच के अपनी सोच को, अपने दर्शन को लेखनी प्रदान की है, उन्हें सनातन शास्त्रों का रूप दिया है  |ये सनातन शास्त्र हमारी अमूल्य निधि है | उनका अध्ययन ही हमें इस सनातन धर्म के मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देते है |उनका अध्ययन हमें अँधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने का मार्ग दिखता है |
क्रमशः
                                   || हरिः शरणम् ||
                

Sunday, October 4, 2015

पुनर्जन्म और विज्ञान

मेरे प्रिय पाठकों,
            आपको यह जानकर अति प्रसन्नता होगी कि मेरा स्वप्न , मेरी पुस्तक के  प्रकाशन के साथ पूरा हो चूका है | 'पुनर्जन्म और विज्ञान' का लोकार्पण मेरे ही शहर सुजानगढ़ में दिनांक 2/10/2015 को स्वामी संवत् सोमगिरी  जी महाराज, शिवबाड़ी,बीकानेर के  कर कमलों द्वारा संपन्न हुआ | मुख्य अतिथि श्री मान राजकुमार रिणवा , वन एवं पर्यावरण मंत्री , राजस्थान सरकार थे | श्री कानपुरी महाराज की अध्यक्षता में  और स्वामी श्री हरिशरण जी महाराज के विशेष आतिथ्य में यह गरिमापूर्ण समारोह सुजानगढ़ और आसपास के क्षेत्रों के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति से और अधिक आकर्षक बन गया |
                            जिस किसी भी महानुभाव को इस पुस्तक को प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो तो निःसंकोच मुझसे संपर्क कर सकते हैं | मेरे समपर्क सूत्र हैं-
                                  फ़ोन -+919414400276
                                 मेल - pckachhwal@gmail.com
                       कार्यक्रम को सानंद संपन्न करने के लिए मैं इन दिनों व्यस्त रहा था इस कारण से ब्लॉग नहीं लिख पाया | शीघ्र ही नए विषय के  साथ आपके समक्ष आऊंगा | पुस्तक लोकार्पण समारोह को सफल बनने के लिए सभी का आभार |
                            हरिः शरणम् |