Thursday, September 18, 2014

विवेकानंद |

                विश्व में भारतीय अध्यात्म का परचम लहराने वाले और भारत की गौरवशाली परंपरा एवं संस्कृति के सच्चे संवाहक ने चार जुलाई 1902 को बेलूरमठ में महाप्रयाण लिया था। उन्होंने अपने अनुयायियों को संकेत दे दिया था कि उनकी आयु 40 वर्ष की है। उनका यह कथन सच निकला। 39 वर्ष पांच माह और 24 दिन की उम्र में वह दुनिया से विदा हो गए।
                जानकार बताते हैं कि चार जुलाई 1902 को स्वामीजी एकदम सहज थे। अंतिम दिन उनकी दिनचर्या ऐसी गुजरी कि किसी को ऐसी घटना का अंदाजा नहीं था। स्वामीजी का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल स्थित कोलकाता में हुआ था। युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेश में बिखेरने वाले विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकांड विद्वान थे। उनका मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। मां भुवनेश्वरी देवी धर्मपरायण महिला थीं। नरेंद्रनाथ आगे चलकर के विवेकानन्द नाम से प्रसिद्ध हुए।
                 श्रीरामकृष्ण आश्रम के स्वामी विश्वरूप महाराज ने बताया कि विवेकानंद युगांतकारी आध्यात्मिक संत थे। उन्होंने सनातन धर्म को गतिशील तथा व्यावहारिक बनाया। सुदृढ़ सभ्यता के निर्माण के लिए विज्ञान व भौतिकवाद को भारत की आध्यात्मिक संस्कृति से जोड़ने का आग्रह किया। भारत में स्वामीजी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनायी जाती है। विवेकानंद का उद्घोष था- उठो, जागो और तब तक मत रुको जबतक लक्ष्य को न प्राप्त कर लो। नरेंद्रनाथ कैसे श्रीरामकृष्ण की दिव्य शक्ति से बने यह पूरी दुनिया जानती है। जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं होने के बावजूद स्वामीजी ने पैदल कश्मीर से कन्याकुमारी तक की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने भारत की आत्मा को पहचान लिया।
                                ।। हरि: शरणम् ।।

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