Thursday, September 11, 2014

नीति |

                   लंका युद्ध लगभग समाप्त हो चूका था | महाबली रावण युद्धभूमि में मरणासन्न था | तभी भगवान श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को युद्ध भूमि में जाकर रावण से नीति, राजनीति का ज्ञान प्राप्त कर आने का आदेश दिया | उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि रावण जितना नीति,राजनीति का ज्ञाता और शक्तिशाली आज के समय में कोई नहीं है और न ही निकट भविष्य में कोई अन्य होगा | अतः तुरंत जाकर अभी उससे ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है | लक्ष्मण उनसे आज्ञा लेकर युद्धभूमि को चल पड़े | वहां जाकर वे रावण के सिर की तरफ खड़े हो गए |रावण ने उसे आँखें खोलकर देखा परन्तु लक्ष्मण के ज्ञान देने के आग्रह पर कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी | लक्ष्मण ने वापिस लौटकर श्री राम को यह सब बताया | श्री राम ने कहा की ज्ञान प्राप्त करने के लिए सदैव ही ज्ञानी व्यक्ति के चरणों में ध्यान रखना चाहिए | यह कहकर श्री राम ने लक्ष्मण को पुनः जाकर उचित आग्रह के साथ ज्ञान प्राप्त कर आने का आदेश दिया |
                   लक्ष्मण ने इस बार जाकर रावण का चरण वंदन किया और ज्ञान देने का आग्रह किया | रावण ने नीति की तीन बातें लक्ष्मण को बताई | रावण ने कहा कि पहली नीति की बात यह है कि शुभ कार्य को यथा शीघ्र संपन्न कर लेना चाहिए तथा अशुभ कार्य को जितना टाल सको टालना चाहिए | जैसे कि मैंने भगवान श्री राम को पहचान तो कभी का ही लिया था परन्तु उनकी शरण में नहीं जा सका, जबकि मुझे बहुत पहले ही उनके शरणागत हो जाना चाहिए था |अशुभ कार्य मैंने जल्दी कर लिया जैसे सूपनखा के कहते ही मैंने सीता का अपहरण कर लिया जबकि इस अशुभ कार्य को मैं चाहता तो कुछ समय के लिए टाल सकता था | अतः नीति की पहली बात यह है कि शुभस्य शीघ्रम् |
                    रावण ने फिर नीति की दूसरी बात बताई कि जीवन में कभी भी किसी को अपने से हल्का और कमजोर मत आंको | मुझे ब्रह्माजी ने वरदान दिया था कि तुम वानर और मानव के अलावा किसी अन्य के द्वारा नहीं मारे जाओगे | मैं जिंदगी भर यही समझता रहा कि मैं तो इन दोनों से बहुत बलवान हूँ | इन दो के द्वारा तो मैं मारा नहीं जा सकता और ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार इन दो के अतिरिक्त मुझे कोई अन्य मार नहीं सकेगा | इसी भ्रम में मैंने इन दोनों की सदैव ही उपेक्षा की, जिसका परिणाम आज तुम्हारे सामने है | अतः जिंदगी में कभी भी किसी को कमजोर समझने की भूल न करना |
                एक गहरी साँस छोड़ते हुए रावण ने तीसरी ज्ञान की बात कही कि छिपाने योग्य बात सदैव ही सबसे छिपानी चाहिए ,किसी को भी कह देने से आपका ही नुकसान होगा | मैंने अपने मरने का राज केवल विभीषण को बताया था | आज वही विभीषण उस राज को जानने के कारण ही मेरी मृत्यु का कारण बना है अन्यथा मुझे कभी भी और कोई मार नहीं सकता था | रावण ने इतना कहकर आँखें मूँद ली और गहरी सांसे लेने लगा | लक्ष्मण ने उसकी मृत्यु निकट जानकर उनको अंतिम प्रणाम किया और भगवान श्री राम की और लौट पड़ा |

                         || हरिः शरणम् ||    

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