एक परमात्मा ही है
"परमात्मा एक है" और "एक परमात्मा ही है ", इन दो वाक्यों में साधारण व्यक्ति को केवल शब्द विन्यास का अंतर ही दिखलाई पड़ेगा।परंतु गूढ़ दृष्टि से देखें तो अंतर बहुत बड़ा है।"परमात्मा एक है", इसका अर्थ है कि परमात्मा के अतिरिक्त भी कोई अन्य है जबकि "एक परमात्मा ही है", यह वाक्य स्पष्ट करता है कि परमात्मा से भिन्न कोई दूसरा है ही नहीं।
"परमात्मा एक है", इसको द्वैतवाद कहा जाता है और "एक परमात्मा ही है" वह अद्वैतवाद है। सनातन धर्म की विशेषता है कि वह इन दोनों वाद में विश्वास करता है। यही कारण है कि सनातन धर्म में मतभेद होते हुए भी मनभेद नहीं है। जो सम्प्रदाय "परमात्मा एक है" केवल इसी बात में विश्वास रखते हैं और जो कोई उनके इस कथन में विश्वास नहीं करता, उसके वे पक्के विरोधी बन जाते हैं।आज देश इसी वैचारिक भिन्नता का सामना कर रहा है। इस भिन्नता से उबरने का एक ही रास्ता है कि हम "एक परमात्मा ही है", इस बात को दृढ़ता से स्वीकार करें।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
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