शरीर और साधना
क्या साधना के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है ?
"साधना साधिता पूर्वं सोSधुना नैव सक्षम:।
असमर्थ्यादयं शोक: देहाभिमानमूलक:।।
पहले मैंने साधना संपन्न की किन्तु इस समय मैं असमर्थ हूं। असमर्थता से होने वाला यह शोक देहाभिमानमूलक है।अर्थात् पूर्व में किया अब नहीं कर पा रहा हूं -ऐसे विचार देहाभिमानी को होते हैं। साधक को यह निश्चय करना चाहिए कि मैं देह नहीं हूं। इसलिए मेरा करने न करने से कोई सम्बन्ध नहीं है।"
स्वामीजी कहते हैं कि मात्र क्रिया से आत्मबोध नहीं होता। अस्वस्थ शरीर के द्वारा जबरदस्ती की जाने वाली क्रियाएं परमात्मा तक पहुंचने में सहयोग प्रदान करने के स्थान पर कई बार बाधक बन जाती है। अपने परम उद्देश्य तक पहुंचने के लिए हमें प्रत्येक क्रिया और कामना का त्याग करना होगा।शरीर से क्रियाएं ही होती है।अतः परमात्मा की प्राप्ति के लिए केवल शरीर का स्वस्थ बने रहना आवश्यक नहीं है। शरीर भले ही अस्वस्थ रहे परंतु परमात्मा के प्रति लगन में कमी कभी नहीं आनी चाहिए।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरि:शरणम्।।
No comments:
Post a Comment