Thursday, August 18, 2022

नाम जप की महिमा

 नाम जप की महिमा

हरि:शरणम् आश्रम के आचार्य श्री गोविंद राम शर्मा ने नाम जप महिमा पर  अपना प्रवचन  भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार की तीन अतुल्य सम्पतियों का उल्लेख करते हुए किया। भाईजी की ये तीन अतुल्य संपतियां है -

1.सबमें भगवान को देखो।2. भगवान में अटूट श्रद्धा रखो।3.भगवन्नाम का आश्रय लो।

    आचार्यजी ने कहा कि नाम जप में आप भगवान का कोई भी नाम ले सकते हैं,जैसे राम, कृष्ण,नारायण आदि। यहां तक कि हरि:शरणम् के जप से भी कल्याण हो सकता है। इसके लिए उन्होंने कलकत्ता के सेठ रूडमलजी का दृष्टांत देते हुए बताया कि मरणासन्न स्थिति में उन्होंने हरि:शरणम् का जप किया और वे रोगमुक्त हो गए।महामना मालवीयजी ने भाईजी को नारायण नाम की महिमा बतलाते हुए गोरखपुर प्रवास की अवधि में कहा था कि किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले इस नाम का जप करने से उन्हें सफलता मिली है।इसी प्रकार भाईजी ने गांधीजी से हुई अपनी भेंट का जिक्र करते हुए कहा है कि तुलसी माला देने पर गांधीजी ने उनसे प्रतिदिन एक माला अधिक नाम जप करने का वादा करवाया था।

      आचार्य श्री गोविंद राम जी शर्मा ने एक संत का दृष्टांत देते हुए राम नाम के अमूल्य होने को स्पष्ट किया। जैसे हीरे को एक जोहरी ही परख सकता है उसी प्रकार नाम का मूल्य वही समझ सकता है जिसने इसका जप करते हुए नामी को प्राप्त किया हो। एक बार भी जिसने मज़बूरी में भी भगवान का नाम ले लिया, उसका सम्मान भी सभी देवता, यहां तक कि ब्रह्मा,शंकर और इंद्र भी करते हैं। दो भाइयों का दृष्टांत देते हुए आचार्यजी ने येन केन प्रकारेण नाम लेने के महत्व को स्पष्ट किया।

       नाम जप वह पुल है, जो कि व्यक्ति को परमात्मा तक ले जाता है।व्यक्ति चाहे जिस योग से परमात्मा की ओर चलना चाहता हो, नाम जप उसमें सहयोगी ही है। जो कोई योग आदि नहीं जानता वह भी नाम जप से संसार सागर से पार हो जाता है। ब्रह्मलीन स्वामी श्री रामसुखदासजी को उद्घृत करते हुए आचार्यजी कहते हैं कि नामजप से प्रारब्ध तक बदल जाता है।मन लगे चाहे न लगे नामजप व्यर्थ नहीं जाता।मन लगाकर लिया गया नाम सुमिरन है। सुमिरन से भगवान शीघ्र मिल जाते हैं।भगवान का होकर भगवान का नाम लेने से भगवान दौड़े चले आते हैं जैसे "माँ, माँ" पुकारने से बच्चे की माँ दौड़कर उस तक पहुंच जाती है।

      आचार्यजी आगे कहते हैं कि कलियुग में तो राम का नाम लेना ही पर्याप्त है।नामजप एक पुकार है जो परमात्मा तक अवश्य ही पहुंचती है क्योंकि नामजप में नामी की मुख्यता है। नामजप में किसी विधि की आवश्यकता नहीं है जबकि अन्य अनुष्ठान में विधि अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

कलिजुग जोग न जप न ग्याना।

एक अधार राम गुन गाना।।

कलियुग केवल नाम अधारा ।

सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।।

     राम नाम जप को कल्प वृक्ष बताते हुए आचार्य जी कहते है कि कोई कहे कि इससे कुछ नहीं होता है तो फिर कुछ नहीं होगा और कोई कहता है कि इससे कुछ हो सकता है तो फिर सब कुछ हो जाता है।

   अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्तवा क्लेवरम्।

   य: प्रयाति स मद्भावं यान्ति नास्त्यत्र संशयः।।गीता-8/5।।

अर्थात अंतिम समय में जो मेरे नाम का स्मरण कर लेता है, वह मुझे ही प्राप्त होता है, इसमें कोई संशय नहीं है।

     आचार्य श्री गोविंद राम शर्मा के डेढ़ घंटे के प्रवचन को कुछ शब्दों में समेटने का यह छोटा सा प्रयास है। कल फिर दूसरे दिन के प्रवचन के सार संक्षेप के साथ उपस्थित होऊंगा।

।। हरि:शरणम्।।

प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल

हरि:शरणम् आश्रम, बेलड़ा, हरिद्वार से 17 अगस्त 2022


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