Saturday, April 23, 2022

-अपनों से अपनी बात -

 ‘करिष्ये वचनं तव’ -अपनों से अपनी बात  -

          कल तक इस श्रृंखला की 31 कड़ियाँ प्रसारित हो चुकी है | इस अवस्था पर आकर मैं समझता हूँ कि इस विषय को लेकर उत्पन्न हो सकने वाली संभावित भ्रांतियों का तत्काल निवारण किया जाना आवश्यक है | अर्जुन के सखा, परम हितैषी और गुरु श्री कृष्ण ही थे, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है | फिर भी अर्जुन उस अवस्था को प्राप्त नहीं हो सका जिसका वह इतना ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद अधिकारी था | इसका अर्थ यह नहीं है कि अर्जुन मुक्त नहीं हो सका और हम तो उसके आस-पास कहीं ठहरते ही नहीं है तो हमारा कल्याण कैसे होगा, हम मुक्त कैसे होंगे ?

           श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान का अथाह भंडार है जोकि महाभारत ग्रन्थ के अंतर्गत आता है | महाभारत इस देश का इतिहास है | जो व्यक्ति अपने देश के इतिहास से शिक्षा ग्रहण नहीं करता वह कल्याण का अधिकारी कैसे हो सकता है ? शास्त्र हमें उन त्रुटियों की ओर भी संकेत करते हैं जो उनमें वर्णित पात्रों द्वारा की गयी है | उनमें से एक पात्र अर्जुन भी है, जिसने भगवान् को कह तो दिया ‘करिष्ये वचनं तव’ परन्तु वह उस ज्ञान पर पूर्ण रूप से चल नहीं सका था | जब तक हम अर्जुन की उन त्रुटियों की विवेचना नहीं करेंगे तब तक हम भी अपने जीवन में उन त्रुटियों को दोहराते चले जायेंगे और केवल ज्ञान की गलियों में भटकते रहेंगे, उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकेंगे |

       प्रश्न उठता है कि क्या इतने अधिक विवेचन से साधकों के मध्य कहीं अनुचित सन्देश तो नहीं जा रहा है, वे भ्रमित तो नहीं हो रहे हैं ? सब कुछ साधकों के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस विवेचना को किस प्रकार लेते हैं ।श्रृंखला का उद्देश्य एक दम स्पष्ट है।श्रृंखला के प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य केवल साधकों को उन विकारों के प्रति सावधान करना है, जिन विकारों के बार-बार प्रवेश करते रहने से अर्जुन जैसा महायोद्धा भी अपने उद्देश्य से भटक गया था | हमारे सामने भी वैसी ही परिस्थितियां आ सकती है, जिनके कारण अर्जुन विचलित हो गया था | विकार के भीतर प्रवेश करते ही ज्ञान विस्मृत हो जाता है, जैसा कि अर्जुन के साथ हुआ था |अगर हम अपने जीवन में विकारों को आने ही नहीं देंगे, तभी गीता के ज्ञान से हमारा कल्याण होगा अन्यथा नहीं |

          शास्त्र-मोह और सांसारिक-मोह, इन दो विषयों को आचार्य श्री गोविन्द राम जी शर्मा इन दिनों अपने प्रातःकालीन प्रवचन में पूर्ण रूप से स्पष्ट कर रहे हैं | इस श्रृंखला का उद्देश्य भी यही है कि हम शास्त्रीय मोह में न पड़कर केवल शास्त्र से शिक्षा ग्रहण करें और अपने जीवन में प्रभु के प्रति अतिशय प्रेम प्रकट करें, जिससे जीवन आनंदमय बन सके | जब परमात्मा का प्रेम पराकाष्ठा पर होगा तब समस्त शास्त्र और संसार स्वतः ही पीछे छूट जायेंगे और इस बात का हमें पता भी नहीं चलेगा कि शास्त्र और संसार कहाँ रह गए | शास्त्र परमात्मा की राह पर चलने में हमारे सहयोगी हैं ।शास्त्र तभी तक उपयोगी हैं, जब तक उद्देश्य तक पहुँचने की राह के सभी कठिन मोड़ दृष्टि से ओझल नहीं हो जाते | परमात्मा का पथ सीधा और सरल है, बस आवश्यकता है, इस राह को गुरु और शास्त्रों के माध्यम से एक बार स्पष्ट रूप से जान लें |

       कल से ‘करिष्ये वचनं तव’ श्रृंखला पर फिर से आगे बढ़ते हुए 'महाभारत' में प्रवेश करेंगे, जिसमें भगवान् श्री कृष्ण से अर्जुन एक बार फिर गीता-ज्ञान देने की प्रार्थना कर रहे हैं |

 ||हरिः शरणम् ||                                                            डॉ.प्रकाश काछवाल


  


            


        

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