Saturday, December 29, 2018

अविरल जीवन(Life is continuous)-12

अविरल जीवन (Life is continuous)-12
    इतने गहन विवेचन के बाद पुनः लौटते हैं उस दृष्टान्त पर, जिसमें दो गर्भस्थ शिशु आपस में वार्तालाप कर रहे हैं और विषय है, "एक जन्म के जीवन के बाद भी जीवन चलता रहेगा अथवा नहीं" | प्रथम शिशु कहता है कि यह एक ही जीवन है जो प्रसव होने के साथ ही समाप्त हो जाएगा जबकि दूसरा शिशु कह रहा है कि नहीं, प्रसव के होने के साथ ही जीवन समाप्त नहीं होता बल्कि जीवन आगे भी यथावत चलता रहेगा |
दूसरा शिशु सत्य कह रहा है कि शरीर के परिवर्तित अथवा नष्ट हो जाने पर भी जीवन अविरल चलता रहता है क्योंकि जीवन का सम्बन्ध जीव से है जो कि अक्षर है, शरीर से नहीं जो कि परिवर्तित होता रहता है और क्षर भी है | दूसरा शिशु मां को देख न पाने के बावजूद भी मां के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए कहता है कि मां ही हमारी अच्छी प्रकार से देखभाल करती है, चाहे शारीरिक परिवर्तन कितना भी हो जाये | मां परमात्मा का व्यक्त रूप ही है | जिस प्रकार गर्भस्थ शिशु को मां दिखलाई नहीं पड़ती क्योंकि वह मां के भीतर स्थित है | इसी प्रकार हम भी परमात्मा में स्थित हैं और परमात्मा के सुरक्षा घेरे में हैं | परमात्मा ही हमारी सुरक्षा करते हैं और हमारा भरण पोषण भी -"योगक्षेमं वहाम्यहम्"| दिखलाई इसलिए नहीं पड़ते क्योंकि हम आन्तरिक दृष्टि के बजाय बाह्य दृष्टि को अधिक महत्त्व देने लगे हैं |
           परमात्मा की अपरिमेय विराटता हमें अपने भीतर समेटे हुए हमारा भलीभांति ध्यान रखती है | वे न तो कुछ करते हैं और न ही लिप्त होते हैं | उनके कारण ही प्रकृति का सृजन हुआ है और विस्तार भी | हमारा सृजन प्रकृति ने किया है और इस प्रकार से वह परमात्मा ही अप्रत्यक्ष रूप से हमारे सृजक हैं | हम भले ही उन्हें देख नहीं पाते हों परन्तु वे हम सभी को समान भाव से देख रहे हैं | दिखलाई नहीं देने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि परमात्मा का कोई अस्तित्व ही नहीं है | परमात्मा हमारे शरीर के भीतर जीवात्मा के रूप में स्थित हैं | हम जीवात्मा हैं इसलिए परमात्मा के अंश हैं | हम संसार के भोगों में आसक्त होकर प्रकृति के साथ बंध गए हैं | जिस दिन हमें वास्तविकता का पता चल जायेगा, परमात्मा चहूँ और दिखाई देने लगेंगे | जीवन अविरल है, जीवात्मा अक्षर है परन्तु हमें यही मानकर संतोष नहीं करना होगा बल्कि परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर उनके प्रति समर्पित होना होगा | तभी यह जीव, अपने जीवन जीते हुए परम उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल सिद्ध होगा |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ।।

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