सांसारिक प्रेम का दूसरा नाम सशर्त प्रेम (Conditional love)भी है |सांसारिक प्रेम अपने सहयोगी साथी से कुछ न कुछ पाना चाहता है,उसपर अपना एक मात्र अधिकार स्थापित करना चाहता है,और किसी के साथ उसे बाँटना नहीं चाहता |वह सिर्फ यही चाहता है कि उसकी चाहत उसका प्रेम केवल मेरे लिए ही हो |वह उसे किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं देना चाहता |सांसारिक प्रेम शर्त रहित वास्तविक प्रेम के एकदम उलट है |क्योंकि सांसारिक प्रेम के साथ कई प्रकार की शर्तें संलग्न रहती है |ये शर्तें समयानुसार बदलती और बढती भी रहती है |इन शर्तों को पूरा करना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है |सांसारिक प्रेम हालाँकि सकारात्मक भावनाओं से जुड़ा होता है ,परन्तु इसके साथ इसी के कारण कई समस्याएं भी जुडी होती है |सांसारिक प्रेम के साथ मुख्य रूप से चार प्रकार की समस्याएं होती हैं-
(१)संतुष्टि का अभाव(Never satisfied)- कोई भी व्यक्ति सांसारिक प्रेम करने वाले को संतुष्ट नहीं कर सकता |क्योंकि वह व्यक्ति प्रेम के स्थान पर शर्तें पूरी होने यानि कामनाओं को पूरी करने को ज्यादा महत्त्व देता है |
(२)सम्बन्ध की अल्पावधि(Short life of relation ship) -सांसारिक प्रेम केवल थोडे समय के लिए ही कायम रहता है |जब आपकी आकांक्षाये पूरी हो जाती है तब सम्बन्ध एक बोझ लगने लगता है |जैसे आप एक नई कार खरीदते है,आपकी यह कार पाने की इच्छा पूरी हो जाती है |आपका सांसारिक प्रेम कार के प्रति होता है |कार खरीदते ही आप उसके पेट्रोल,बीमा और अन्य उसपर होने वाले खर्चों को सोचकर उस कार से मोह भंग हो जाता है |यही सांसारिक प्रेम की परिणिति है |अपनी आकांक्षाएं पूरी होने के बाद व्यक्ति अपने साथी के साथ संबंधों को महत्त्व देना बंद कर देता है |
(३)अधिकार ज़माने की भावना(Possessiveness) -सांसारिक प्रेम के साथ चूँकि शर्तें संलग्न रहती है,अतः उन शर्तों को या उन आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु व्यक्ति अपने साथी पर अधिकार जमाना चाहता है |अधिकार स्थापित करने के बाद वह उसको अपने अनुसार बदलने का प्रयास करता है,जिससे वह अपनी कामनाएं पूरी कर सके|
(४)नकारात्मक भावनाओं का आगमन(Negative thinking)-सांसारिक प्रेम के कारण हम शर्तों और वास्तविकताओं के मध्य संघर्षरत रहते है |धीरे धीरे इस जाल में फंसकर हम अपनी मूल पहचान ही खो देते है |तब हममे नकारत्मकता का प्रवेश हो जाता है |हम ईर्ष्यालू,बात बात में झगडा करने वाले,और अपने आप के अधिकार की बातें करने वाले बन जाते है |हम अपनी संवेदनशीलता(Sensitivity) को भी खो देते हैं |
इस प्रकार हम देखते है कि सांसारिक प्रेम केवल स्वयं के अधिकार की बात तो करता है परन्तु किसी को अधिकार देना नहीं चाहता |सब कुछ पाना चाहता है परन्तु कुछ भी देना कभी भी पसंद नहीं करता |सवयं स्वतन्त्र रहना चाहता है और दूसरे की स्वतंत्रता का हनन करता है |अतः सांसारिक प्रेम अपनी कामनाओं और ईच्छाओं को पूर्ण करने का एक सशर्त समझौता मात्र है,प्रेम नहीं|इसे प्रेम का नाम देना सर्वथा अनुचित है |
|| हरिः शरणम् ||
(१)संतुष्टि का अभाव(Never satisfied)- कोई भी व्यक्ति सांसारिक प्रेम करने वाले को संतुष्ट नहीं कर सकता |क्योंकि वह व्यक्ति प्रेम के स्थान पर शर्तें पूरी होने यानि कामनाओं को पूरी करने को ज्यादा महत्त्व देता है |
(२)सम्बन्ध की अल्पावधि(Short life of relation ship) -सांसारिक प्रेम केवल थोडे समय के लिए ही कायम रहता है |जब आपकी आकांक्षाये पूरी हो जाती है तब सम्बन्ध एक बोझ लगने लगता है |जैसे आप एक नई कार खरीदते है,आपकी यह कार पाने की इच्छा पूरी हो जाती है |आपका सांसारिक प्रेम कार के प्रति होता है |कार खरीदते ही आप उसके पेट्रोल,बीमा और अन्य उसपर होने वाले खर्चों को सोचकर उस कार से मोह भंग हो जाता है |यही सांसारिक प्रेम की परिणिति है |अपनी आकांक्षाएं पूरी होने के बाद व्यक्ति अपने साथी के साथ संबंधों को महत्त्व देना बंद कर देता है |
(३)अधिकार ज़माने की भावना(Possessiveness) -सांसारिक प्रेम के साथ चूँकि शर्तें संलग्न रहती है,अतः उन शर्तों को या उन आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु व्यक्ति अपने साथी पर अधिकार जमाना चाहता है |अधिकार स्थापित करने के बाद वह उसको अपने अनुसार बदलने का प्रयास करता है,जिससे वह अपनी कामनाएं पूरी कर सके|
(४)नकारात्मक भावनाओं का आगमन(Negative thinking)-सांसारिक प्रेम के कारण हम शर्तों और वास्तविकताओं के मध्य संघर्षरत रहते है |धीरे धीरे इस जाल में फंसकर हम अपनी मूल पहचान ही खो देते है |तब हममे नकारत्मकता का प्रवेश हो जाता है |हम ईर्ष्यालू,बात बात में झगडा करने वाले,और अपने आप के अधिकार की बातें करने वाले बन जाते है |हम अपनी संवेदनशीलता(Sensitivity) को भी खो देते हैं |
इस प्रकार हम देखते है कि सांसारिक प्रेम केवल स्वयं के अधिकार की बात तो करता है परन्तु किसी को अधिकार देना नहीं चाहता |सब कुछ पाना चाहता है परन्तु कुछ भी देना कभी भी पसंद नहीं करता |सवयं स्वतन्त्र रहना चाहता है और दूसरे की स्वतंत्रता का हनन करता है |अतः सांसारिक प्रेम अपनी कामनाओं और ईच्छाओं को पूर्ण करने का एक सशर्त समझौता मात्र है,प्रेम नहीं|इसे प्रेम का नाम देना सर्वथा अनुचित है |
|| हरिः शरणम् ||
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