यात्रा-वृत्तान्त -27
गूंजी से काली मंदिर, ॐ पर्वत होते हुए आगे लिपुलेख दर्रा (pass) का मार्ग है । उसी मार्ग से हम ॐ पर्वत देखकर लौट रहे हैं । यही कैलाश मानसरोवर की यात्रा का मार्ग है । कैलाश मानसरोवर को जाने वाले यात्री काली माता के दर्शन करके ही आगे बढ़ते हैं । काली मंदिर के सामने एक बहुत ऊँचा पहाड़ है जिसमें एक गुफा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है । यह व्यास गुफा है । कहा जाता है कि वेदव्यासजी ने यहाँ साधना की थी । यहीं मां ने उनको स्वप्न में दर्शन दिए थे । उन्होंने ही यहाँ काली मंदिर का निर्माण कराया था ।
काली नदी माँ काली के चरणों से निकलती है और गूंजी से नीचे की ओर बहते हुए भारत-नेपाल की सीमा बनाती है । मन्दिर के गर्भगृह में जाकर माता की पूजा अर्चना कर बाजू में स्थित शिव मंदिर में भगवान आशुतोष की पूजा की । मंदिर से बाहर निकलने पर बाँई ओर सेना की कैंटीन है । यहां चाय-नाश्ते की अच्छी व्यवस्था है । किसी को कैंटीन से सामान ख़रीदना हो तो ख़रीद भी सकते हैं ।
अब हम गूंजी की ओर लौट चले हैं । आज रात्रि विश्राम धारचूला में करना है, इसलिए पहले से ही पैक किया सामान होमस्टे से उठाया और आगे की यात्रा पर निकल पड़े । दो दिन पूर्व जिस दिन हम गूंजी आ रहे थे, उस समय बरसात हो रही थी । उसी रात धारचूला और गूंजी के मध्य में लैंडस्लाइड हो गई थी, जिससे रास्ता बन्द हो गया था । गत रात्रि को ही रास्ता खोल दिया गया था जिससे हमें भी यहाँ से निकलने केलिए हरी झण्डी मिल गई ।
शाम साढ़े चार बजे धारचूला पहुँच गए हैं । होटल वही दो दिन पूर्व वाली कैलाश मानस ही मिली है । विश्राम कर रात को हल्का भोजन लिया और सोने चले गए । सुबह उसी टेम्पो ट्रैवलर से चालक राजू के साथ पाताल भुवनेश्वर के लिए रवाना होंगे ।
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरिः शरणम् ।।
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