यात्रा-वृत्तान्त -28
यात्रा का छठा दिन -
सुबह दैनिक कार्यक्रम से निवृत होकर नाश्ता-चाय लेकर क़रीब नौ बजे पाताल भुवनेश्वर के लिए निकले । धारचूला से पाताल भुवनेश्वर की दूरी लगभग 170 किमी की है और पहाड़ी रास्ता होने के कारण समय लगना भी निश्चित है । रास्ते में भोजन आदि में भी समय लगना था फिर भी शाम चार बजे पाताल भुवनेश्वर मन्दिर के पास गाड़ी पहुँच गई ।
गाड़ी से मंदिर के ऊपरी प्रवेश द्वार तक लगभग एक किमी पैदल चलना पड़ा । पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से पहले वृद्ध भुवनेश्वर के दर्शन करने होते हैं । उनके दर्शन, पूजादि कर पाताल भुवनेश्वर मंदिर की और चले । स्वागत कक्ष में मोबाइल और बैग आदि जमा कराना पड़ता तथा 260 रू की रसीद कटती है । फिर लाइन में लगना होता है । नम्बर आने पर ही मंदिर की गुफा में प्रवेश मिलता है क्योंकि गुफा में जाने-आने का एक ही रास्ता है इसलिए सुरक्षा के लिए उचित व्यवस्था बनाए रखना आवश्यक भी है । गुफा के भीतर कैमरा, फोन आदि ले जाना निषेध है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा 90 फीट गहरी है । गुफा में उतरने के लिए एक बहुत ही तंग रास्ता है जिसमें ऊपर-नीचे, आजू-बाजू चट्टाने हैं । एक बार में एक ही व्यक्ति बड़ी मुश्किल से उतर/चढ़ सकता है । चोट लगने और फिसलने का ख़तरा बराबर बना रहता है । अधिक आयु, दमा और हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित है । कई लोग तो गुफा का संकरा प्रवेश द्वार और नीचे घुप्प अंधेरा देखकर प्रवेश की हिम्मत तक नहीं करते । नीचे उतरने अथवा ऊपर चढ़ने में फिसलने से बचने के लिए दोनों ओर की चट्टानों पर मोटी-मोटी साँकलें लगी हुई है, जिनको दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे उतरा अथवा ऊपर चढ़ा जा सकता है । आख़िर बड़े प्रयास से गुफा में नीचे उतर ही गए । नीचे गुफा में विद्युत प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था है । ऑक्सीजन कनसनट्रेटर मशीन भी लगी हुई है, जो निरंतर वातावरण में ऑक्सीजन का आवश्यक स्तर बनाए रखती है ।
आज तो हम जैसे पाताल लोक ही पहुंच गए । 33 कोटि देवताओं के अद्भुत दर्शनों और इतनी पवित्र और प्राचीन गुफा में प्रवेश के आनंद ने तो जीवन धन्य कर दिया । यहाँ नहीं आते तो एक महत्वपूर्ण स्थान देखने से वंचित रह जाते । सारी सृष्टि, चारों युग, कामधेनु, वासुकि व तक्षक नाग, ब्रह्मा, विष्णु महेश, शेषनाग, गंगा अवतरण आदि सभी की प्राकृतिक मूर्तियाँ सजीव सी प्रतीत होती हैं, देखकर आश्चर्य होता है ।
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।। हरिः शरणम् ।।