Wednesday, June 25, 2025

यात्रा -वृत्तान्त -28

 यात्रा-वृत्तान्त -28

यात्रा का छठा दिन - 

           सुबह दैनिक कार्यक्रम से निवृत होकर नाश्ता-चाय लेकर क़रीब नौ बजे पाताल भुवनेश्वर के लिए निकले । धारचूला से पाताल भुवनेश्वर की दूरी लगभग 170 किमी की है और पहाड़ी रास्ता होने के कारण समय लगना भी निश्चित है । रास्ते में भोजन आदि में भी समय लगना था फिर भी शाम चार बजे पाताल भुवनेश्वर मन्दिर के पास गाड़ी पहुँच गई । 

                   गाड़ी से मंदिर के ऊपरी प्रवेश द्वार तक लगभग एक किमी पैदल चलना पड़ा । पाताल भुवनेश्वर के दर्शन से पहले वृद्ध भुवनेश्वर के दर्शन करने होते हैं । उनके दर्शन, पूजादि कर पाताल भुवनेश्वर मंदिर की और चले । स्वागत कक्ष में मोबाइल और बैग आदि जमा कराना पड़ता तथा 260 रू की रसीद कटती है । फिर लाइन में लगना होता है । नम्बर आने पर ही मंदिर की गुफा में प्रवेश मिलता है क्योंकि गुफा में जाने-आने का एक ही रास्ता है इसलिए सुरक्षा के लिए उचित व्यवस्था बनाए रखना आवश्यक भी है । गुफा के भीतर कैमरा, फोन आदि ले जाना निषेध है।

              पाताल भुवनेश्वर गुफा 90 फीट गहरी है । गुफा में उतरने के लिए एक बहुत ही तंग रास्ता है जिसमें ऊपर-नीचे, आजू-बाजू चट्टाने हैं । एक बार में एक ही व्यक्ति बड़ी मुश्किल से उतर/चढ़ सकता है । चोट लगने और फिसलने का ख़तरा बराबर बना रहता है । अधिक आयु, दमा और हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों का प्रवेश प्रतिबंधित है । कई लोग तो गुफा का संकरा प्रवेश द्वार और नीचे घुप्प अंधेरा देखकर प्रवेश की हिम्मत तक नहीं करते । नीचे उतरने अथवा ऊपर चढ़ने में फिसलने से बचने के लिए दोनों ओर की चट्टानों पर मोटी-मोटी साँकलें लगी हुई है, जिनको दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे उतरा अथवा ऊपर चढ़ा जा सकता है । आख़िर बड़े प्रयास से गुफा में नीचे उतर ही गए । नीचे गुफा में विद्युत प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था है । ऑक्सीजन कनसनट्रेटर मशीन भी लगी हुई है, जो निरंतर वातावरण में ऑक्सीजन का आवश्यक स्तर बनाए रखती है ।

                आज तो हम जैसे पाताल लोक ही पहुंच गए । 33 कोटि देवताओं के अद्भुत दर्शनों और इतनी पवित्र और प्राचीन गुफा में प्रवेश के आनंद ने तो जीवन धन्य कर दिया । यहाँ नहीं आते तो एक महत्वपूर्ण स्थान देखने से वंचित रह जाते । सारी सृष्टि, चारों युग, कामधेनु, वासुकि व तक्षक नाग, ब्रह्मा, विष्णु महेश, शेषनाग, गंगा अवतरण आदि सभी की प्राकृतिक मूर्तियाँ सजीव सी प्रतीत होती हैं, देखकर आश्चर्य होता है ।

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

Tuesday, June 24, 2025

यात्रा -वृत्तान्त -27

 यात्रा-वृत्तान्त -27

        गूंजी से काली मंदिर, ॐ पर्वत होते हुए आगे लिपुलेख दर्रा (pass) का मार्ग है । उसी मार्ग से हम ॐ पर्वत देखकर लौट रहे हैं । यही कैलाश मानसरोवर की यात्रा का मार्ग है । कैलाश मानसरोवर को जाने वाले यात्री काली माता के दर्शन करके ही आगे बढ़ते हैं । काली मंदिर के सामने एक बहुत ऊँचा पहाड़ है जिसमें एक गुफा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है । यह व्यास गुफा है । कहा जाता है कि वेदव्यासजी ने यहाँ साधना की थी । यहीं मां ने उनको स्वप्न में दर्शन दिए थे । उन्होंने ही यहाँ काली मंदिर का निर्माण कराया था । 

           काली नदी माँ काली के चरणों से निकलती है और गूंजी से नीचे की ओर बहते हुए भारत-नेपाल की सीमा बनाती है । मन्दिर के गर्भगृह में जाकर माता की पूजा अर्चना कर बाजू में स्थित शिव मंदिर में भगवान आशुतोष की पूजा की । मंदिर से बाहर निकलने पर बाँई ओर सेना की कैंटीन है । यहां चाय-नाश्ते की अच्छी व्यवस्था है । किसी को कैंटीन से सामान ख़रीदना हो तो ख़रीद भी सकते हैं ।

        अब हम गूंजी की ओर लौट चले हैं । आज रात्रि विश्राम धारचूला में करना है, इसलिए पहले से ही पैक किया सामान होमस्टे से उठाया और आगे की यात्रा पर निकल पड़े । दो दिन पूर्व जिस दिन हम गूंजी आ रहे थे, उस समय बरसात हो रही थी । उसी रात धारचूला और गूंजी के मध्य में लैंडस्लाइड हो गई थी, जिससे रास्ता बन्द हो गया था । गत रात्रि को ही रास्ता खोल दिया गया था जिससे हमें भी यहाँ से निकलने केलिए हरी झण्डी मिल गई ।

             शाम साढ़े चार बजे धारचूला पहुँच गए हैं । होटल वही दो दिन पूर्व वाली कैलाश मानस ही मिली है । विश्राम कर रात को हल्का भोजन लिया और सोने चले गए । सुबह उसी टेम्पो ट्रैवलर से चालक राजू के साथ पाताल भुवनेश्वर के लिए रवाना होंगे ।

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।

Monday, June 23, 2025

यात्रा -वृत्तान्त -26

 यात्रा-वृत्तान्त -26

       पर्वत पर ॐ की आकृति प्राकृतिक रूप से बनी हुई है । सर्दियों में हिमपात होने पर पूरा पहाड़ बर्फ से ढक जाता है । मार्च के बाद जब बर्फ पिघलनी शुरू होती है तब चारों ओर की बर्फ पहले पिघलती है और ॐ की आकृति उभरकर स्पष्ट दिखलाई देने लगती है । अभी भी ॐ के साइड में हल्की बर्फ है, जून के मध्य तक ॐ एकदम स्पष्ट नज़र आने लगेगा । “ॐ पर्वत” स्थित हिमालय की गोद में उस ॐ के ध्यान में खो जाने का जो परमानंद प्राप्त हुआ, कोई भी शब्द उन पलों के आनंद की अनुभूति को व्यक्त नहीं कर सकता ।

           जहां से हम ॐ पर्वत निहार रहे हैं, उस स्थान के दाहिनी ओर ‘पार्वती की नाभि’ नामक पर्वत है । बर्फ पिघलने पर यहाँ शिव, पार्वती और नंदी की आकृति उभर आई है और पार्वती की नाभि तक दिखलाई पड़ने लगी है । शायद इसी कारण इस स्थान का नाम ‘नाभिढांग कैम्प’ पड़ा होगा । यहाँ सेना की एक चौकी बनी हुई है । इसी पर्वत से थोड़ी दूर पर शेष नाग पर्वत की पीक भी दिखलाई देती है ।

             जहां से ॐ पर्वत के स्पष्ट दर्शन होते हैं, वहाँ से 200 मीटर की दूरी पर दुर्गा मां का मंदिर बना हुआ है, जिसकी देखभाल ITBP करती है । पुजारी भी ITBP का ही है । यहाँ नियमित पूजा आरती होती है । यहाँ से वापसी का मन तो नहीं करता लेकिन घड़ी के कांटे बता रहे हैं कि शीघ्र ही चलना चाहिए, रास्ते में काली मंदिर भी देखना है । काली मंदिर यहाँ से गूंजी लौटते समय बीच रास्ते में पड़ता है, जहां से काली नदी का उद्ग़म होता है । काली मंदिर के पास ही सेना की चेकपोस्ट है, यहाँ फिर से एक बार लौट रहे यात्रियों की जाँच की जाती है । जाँच का उद्देश्य है कि जितने और जो भी यात्री ऊपर गए हैं, वे सब लौट आए हैं या नहीं ।

क्रमशः 

प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल

।। हरिः शरणम् ।।