Tuesday, July 19, 2022

 धर्म क्या है ? कर्म क्या है ? धर्म के अनुसार कर्म निर्धारित किये गए हैं अथवा कर्म से धर्म का निर्धारण हुआ है ? सनातन संस्कृति में प्रत्येक कर्म को धर्म अथवा अधर्म से जोड़ा गया है।धर्म पुण्य का द्योतक है तो अधर्म पाप का। पुण्य का परिणाम स्वर्ग और सुख की प्राप्ति है तो पाप का परिणाम नरक और दुःख भोगना है। 

    बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से कर्मों को दो श्रेणियों में हमारे ऋषि-मुनियों ने बांटा है । इसी वैज्ञानिक आधार पर वर्ण, आश्रम आदि के धर्म निर्धारित किये गए हैं। धर्माचरण करते हुए कैसे व्यक्ति अपने गुणों में सुधार करते हुए सत्व की अवस्था तक पहुंच सकता है और फिर कैसे वह गुणातीत होकर परमात्मा तक पहुंच जाता है, बड़ी ही सरलता से इस बात को हमारे पूर्वजों ने परिभाषित किया है। और अंत में जब परमात्मा की शरण में जाने की बात आती है तो फिर धर्म का आश्रय पीछे छोड़ देना पड़ता है और पाप-पुण्य की सोच से भी मुक्त हुआ जा सकता है। है न आश्चर्य की बात ! धर्म-कर्म हमें तभी तक नचाते हैं, जब तक हम उनके आश्रय में अपना सुख खोजते हैं अन्यथा जीवन के आनंद के लिए तो केवल उस एक का आश्रय ही पर्याप्त है।

   धर्म-कर्म पर संक्षिप्त विवेचन के लिए हम कल मिलते हैं - "धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे" विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए।

प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल 

।। हरि:शरणम्।।

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