Friday, June 17, 2022

 कई सुधि पाठक कहते हैं - ‘महाभारत होने के पीछे द्रोपदी एक महत्वपूर्ण कारण थी | “अंधे का बेटा अँधा” कहना ही दुर्योधन को चोट पहुंचा गया | फिर कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध ने न जाने कितने लोगों के प्राण ले लिए | रक्तरंजित कुरुक्षेत्र की भूमि क्या कभी द्रोपदी को क्षमा कर सकेगी ?’ यह किसी भी घटना को देखने का एक नजरिया हो सकता है परन्तु सत्य कदापि नहीं है | दूसरे कई कारण आप इस युद्ध के पीछे देख सकते हैं जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र मोह, दुर्योधन की महत्वाकांक्षा, द्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य का किया गया अपमान, युद्धिष्ठिर का द्युत क्रीड़ा करना, द्रोपदी का चीरहरण इत्यादि | एक लम्बी सूची हो सकती है परन्तु फिर भी सभी मिलकर कुरुक्षेत्र में हुए रक्तप्रवाह के पीछे का सत्य नहीं हो सकते | सत्य तो केवल एक ही है, श्री कृष्ण के द्वारा कुरुक्षेत्र में कहा गया यह वाक्य कि अर्जुन ! तू तो इन सब योद्धाओं को मारने का श्रेय ले ले, ये सब योद्धा तो मेरे द्वारा पहले से ही मारे जा चुके हैं |

               रामायण के घटनाक्रम को देखें तो क्या भगवान् श्री राम के वनगमन के लिए कैकेयी दोषी थी ? आप कह सकते हैं कि कैकेयी ने ही दशरथ से वर माँगा था – “चौदह बरिस रामु बनबासी “| क्या राम वनगमन के पीछे का यही एक मात्र सत्य है | सतही दृष्टि से देखें तो कई और कारण भी इसके पीछे गिनाये जा सकते हैं परन्तु सत्य इनमें से कोई सा भी नहीं है | इसी प्रकार क्या सीताहरण के लिए स्वर्णमृग का चर्म लाने का सीता का आग्रह दोषी है ? लक्ष्मण द्वारा सीता को अकेले छोड़कर श्री राम की सहायता के लिए चले जाना भी तो इसके लिए उत्तरदायी हो सकता है | नहीं, राम-वनगमन और सीता-हरण दोनों को होना ही था क्योंकि प्रभु राम स्वयं ऐसा चाहते थे | “मरम बचन जब सीता बोला | हरि प्रेरित लछिमन मन डोला || इस चौपाई में “हरि प्रेरित” पर ध्यान चाहूँगा | श्री हरिः की प्रेरणा से ही लक्ष्मण श्री राम की सहायता के लिए दौड़ पड़े थे, न कि मात्र सीता के कहने से | नारदजी को जब विश्वमोहिनी नहीं मिलती तब श्री हरिः को वे श्राप दे देते हैं | श्राप देने के बाद नारदजी को जब दुःख होता है, तब उत्तर में भगवान् क्या कहते हैं ? गोस्वामीजी लिखते हैं - “मृषा होउ मम श्राप कृपाला | मम इच्छा कह दीनदयाला ||”

            “हरि अनंत हरि कथा अनंता | कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ||” इसलिए श्री हरिः की कथा सुनानी-सुननी चाहिए, उनके चरित्र का गान करना चाहिए | कथा पर प्रश्न उठाकर उसमें उलझना नहीं है बल्कि कथा सुन और गाकर संसार सागर की उलझन से मुक्त होना है | भगवान् अवतार लेने पर विभिन्न चरित्र करते हैं जिसका आनंद उठाकर हम आवागमन से मुक्त हो सकते हैं | तभी तो गोस्वामीजी मानस में कहते है – “यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ||” कल मिलेंगे –“ते न परहिं भवकूपा” विषय के साथ |

प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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